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कविता: चाय का सफ़र (रीमा सिंघल, ग्वालियर, मध्यप्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रीमा सिंघल की एक कविता  जिसका शीर्षक है “चाय का सफ़र”:

कुछ लोगों की जिंदगी होती है बिंदास,

चाय ही बनाती है उनके दिन को खास।

 

मैंने देखा एक बुजुर्ग कुछ थैले थे उनके पास,

एक व्यक्ति से बोले चलो चाय पीकर करते टाइम पास ।

 

उसने बोला बैठो, बाजार से चाय मंगाते अभी,

बुजुर्ग बोला बाजार की चाय बाद में पिएंगे कभी।

 

अभी मेरे हाथ से बनी चाय पियो, जिंदगी का मजा तभी है मुस्कुरा कर जियो 

 

दूसरा व्यक्ति बोला देखो भाई मजाक के मूड में हूं नहीं ,

अभी बिना चूल्हे चाय कैसे बनेगी यह बताओ तो सही।

 

बुजुर्ग ने एक थैला खोला चाय की कैटल को टटोला,

व्यक्ति से बोला 5  रुपये का दूध मिलेगा थोड़ा।

 

दूध लाया व्यक्ति बुजुर्ग की कैटल में उड़ेला

बुजुर्ग ने दूसरे थैले से चाय पत्ती, चीनी को  दूध में घोला।

 

स्विच ढूंढ कर बुजुर्ग ने लगाया चाय की कैटल को,

करंट से बेखौफ बुजुर्ग जोर से हिलाने लगा मेटल को।

 

देखते-देखते चाय हो गई तैयार,

बुजुर्ग ने एक और  झोले से  दो गिलास छन्नी को निकाला बाहर ।

 

दोनों बैठ कर चाय की चुस्की ले रहे थे,

एक-एक घूंट को मजे से जी रहे थे ।

 

दूर बैठकर मैं यह सब देख रही थी, माजरा आखिर क्या है यह सब सोच रही थी।

 

बुजुर्ग ने चाय को जहन में उतार कर, राज- ए -दिल खोला ।

आया है जब से करो ना जिंदगी बन गई झमेला।

 

घरवाली ने पकड़ा दिए चार झोला ।

बंद करो चाय की फरमाइश ,अपना रास्ता नापो ...यह बोला ।

 

जिसके साथ मन करें चाय बनाकर पी लेना ।

अब हमसे नहीं बनती आप की चाय, चैन से अब जी लेने दो ना ।

 

तब से साइकिल पर है यह चार झोला।

जहां भी चाय का साथी मिला ,वही मैंने इसको खोला।।