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कविता: किसान का दर्द (पंडित नितिन त्रिगुणायत 'वरी', शाहजहॉपुर, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार पंडित नितिन त्रिगुणायत 'वरी' की एक कविता  जिसका शीर्षक है “किसान का दर्द”:

दर्दों को जो सहता हूं मैं,
               सबके सम्मुख कहता हूं!
कभी किसी ने सोचा था क्या,
               कैसे मैं  भी  रहता।  हूं!!
 
उपजाता मैं ही अनाज को,
                मैं ही भूखा सोता हूं!
कोई दुखड़ा सुने न मेरा,
                बैठ  अकेले  रोता  हूं!!
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हीरे जैसी मेरी फसलें,
               मिट्टी मोल चली जातीं
सदा भावनायें कृषकों की,
             सत्ता हाथ खली जातीं!!
 
कृषि प्रधान भारत में देखो,
              मैं ही सबसे पिछड़ा हूं!
बहुत मतलबी है यह दुनिया,
             मैं अपनों से  बिछड़ा हूं!!
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खेतों में तुम आकर देखो,
            मैं अनाज उपजाता हूं!
फिर भी देखो दुनिया वालों,
            रूखी  सूखी  खाता  हूं!!
 
सस्ते दामों में देखो वे,
            मुझसे  हीरा  लेते  हैं!
उसे जमा गोदामों में कर,
            बड़ा मुनाफा लेते  हैं!!
~~~~~~
बाढो़ में तो मेरी फसले,
             पानी में बह  जाती  हैं!
पड़ता है जब सूखा भारी,
             बिन पानी रह जाती हैं!!
 
पड़ती है जब विपदा भारी,
             रो-रोकर  मैं  सहता  हूं!
कभी किसी ने सोचा था क्या,
            कैसे  मैं  भी  रहता   हूं!!
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