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कविता: आओ, हम सद्भावना के मोती लुटाएँ ! (रविकान्त सनाढ्य, भीलवाड़ा, राजस्थान)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रविकान्त सनाढ्य की एक कविता  जिसका शीर्षक है “आओ, हम सद्भावना के मोती लुटाएँ !”:

सद्भावना
एक अमूल्य शब्द !
आह्लादकारी
और आत्मीय !
 
प्रियत्व की 
ऊँचाई को
बढ़ाने वाला  !
 
थोक के भाव
लुटा सकते हैं
आप !
फिर क॔जूसी
क्यों !
 
रुपये -पैसे
भी नहीं लगते
इसके।
 
सद्भावना है
उदात्ता का
प्रसार !
 
फिर क्यों करते हो
सोच -विचार !
किसी को
जानो , न जानो,
लुटाते रहो
सद्भावना और
प्यार !
 
आ जाएगी
तुम्हारे जीवन में
बहार !
 
सद्भावना
मानवता को
प्रभु-प्रदत्त
प्रसाद है !
 
हर सकता
किसी का भी
अवसाद है ।
 
जहाँ सद्भावना है ,
दिल सबका
शाद ही शाद है ।
 
सद्भावना
शुभ भावों की
बरसात है !
 
निराशामय
जीवन के  लिए
शुभ प्रात है !
 
आओ , हम
सद्भावना के
मोती लुटाएँ
इसधरा को
स्वर्ग बनाएँ !