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कविता: दहन करें अंतर्मन के रावण का (राजीव रंजन, गया, बिहार)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार राजीव रंजन की एक कविता  जिसका शीर्षक है “दहन करें अंतर्मन के रावण का”:

जबतक हृदय में बुराईयों का घर रहेगा,
रावण तबतक अजर-अमर रहेगा।
त्यागेंगे न काम-क्रोध,मद-मोह को,
तबतक राम-रावण में जारी समर रहेगा।
 
आओ आज मिलकर ये प्रण करें,
ईर्ष्या-द्वेष-लोभ का दहन करें,
रावण को हराना है तो लड़ना पड़ेगा,
अत्याचार न असुरों का सहन करें।
 
ये शरीर तो नश्वर है नश्वर रहेगा,
जबतक धरती है तबतक अंबर रहेगा,
उपकार नहीं कुछ परोपकार कर,
तेरे कर्म का ही लोगों को खबर रहेगा,
 
हमें मिलकर अलख जगाना होगा,
अपने परिवार को संस्कार सिखाना होगा,
अंतःकरण के दुःशासन को अनुशासन में लाना होगा,
केवल रावण को ही क्यों?समाज के,
कंस और दुर्योधन को भी जलाना होगा।
 
क्षमा नहीं असुरों को दंड ही भाता है,
शक्ति में ही विजय निहित है यह पर्व हमें सिखलाता है,
शक्ति और मर्यादा में जो सामंजस्य बैठाता है,
जग पूजता है उसे मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाता है।