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कविता: जुगनू (प्रेम बजाज, जगाधरी, यमुनानगर, हरियाणा)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रेम बजाज की एक कविता  जिसका शीर्षक है “जुगनू”:
     
 
आइ जब से मां की कोख में ,
मां की लाडली ,
बाप के घर की रोशनी सब कहते हैं  ,
मां ने रखा नाम रोशनी ,
बाबा जुगनू बुलाते हैं 
 
लगा कर के कलेजे से मुझको पलकों पे  सब  बिठाते थे 
उड़ती फिरती घर आंगन में ,
पंख हवा में लहराते थे ‌।
जुगनू जैसी मेरी चमक चांदनी देख सब हर्षाते थे ।
आंगन से पहुंची बगिया में ,
फैला दी रोशनी अपनी अंधियारी  रातों में ।
चमक के ऐसे उड़ी आकाश में  तारा जैसे चमके नील गगन में ।
 
देखा फिर एक शैतान मच्छर ने ,  
आंखों में उसके चुभ गई चमक मेरी , 
बस फिर समझो आ गई शामत मेरी ।
झट से आया पास मेरे वो ,
आकर के धर दबोचा मुझको ,
छीना-छपटी में पंख मेरे टूटे ,
चमक मेरी भी जाने कहां फिर खो गई वो ।
मां रोए ,बाबा आंसु बहाते हैं ,
कोई तो इन्साफ दिला दो ये गुहार लगाते हैं ।
देख के मेरा हाल ऐसा सब परिंदे भी चादर तान के सोते हैं  ,
ये जहरीले मच्छर आज फिर किसी जुगनू को मसलने को आजाद यूं घूमा करते हैं ।