पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार सीमा गर्ग मंजरी की एक कविता जिसका
शीर्षक है “वक्त की चाल”:
आज तुम्हें अपनी जिंदगी,
हसरतों के मेले में कैसे,
जठराग्नि प्रद्दीप्त होती है जब,
मजबूर विवश निरूपाय,
कचरा बीन इकट्ठा करती,
अपना और इस बेजुबान,
किंतु ,
फोकट हाथ नहीं फैलाती हूँ!
आँखों में शर्मो-हया के ,
रोटी-पानी की जंग में,
लादकर सिर गठरी कचरे की,
मैं भी किसी जमाने में,
पति बच्चें संग बहुत,
वक्त की चाल बदली,
रिश्ते नाते पैसे से होते ,
दम तोड़ते रिश्तों से ,
पति के जाते ही सबने,
घर बार की बरबादियाँ,
वक्त की बे आवाज लाठी,
परिवार उजड़ा सब छूटे,
मैले कुचले वस्त्र हैं मेरे ,
परत दर परत चढ़ी,
साबुन नहाने की किसे पड़ी,
अब मेरी खाक दुनिया,
रोती रहती है अँखियाँ ,
छोड गये रिश्ते नाते सब,
उलझा जीवन सुलझा नहीं,
वक्त की मार से बचना ,
वक्त की चाल पलटते ही,