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कविता: झपकीं लेती आखें (संजय "सागर" गर्ग, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार संजय  "सागर" गर्ग की एक कविता  जिसका शीर्षक है “झपकीं लेती आखें
”:  

झपकीं लेती आखें

चाँदनी रात
आसमान में कोई बादल नहीं,
कोहरा नहीं है,
हालांकि रात सर्दियों की है।
अभी बहुत कुछ हासिल करना है बाकी,
इसलिए बहुत इंतजार है करना पड़ रहा,
आज कोई डर नहीं लगता,
हालांकि रात काफी अंधेरी है।
सोचता हूं, कब सुबह आएगी?
कब देखूंगा उगते सूरज को?
एक आँख की झपकी में।
काले आकाश में तैरती हुई गिनती खत्म हो रही है
आँखों की पलकें अभी भी एक नहीं होना चाह रहे
अभी भी गिन रहे हैं,
एक तारा ... दो तारे ..... तीन तारे .......
सुबह होने के इंतजार में।