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ग़ज़ल (मोहन लाल सिंह, सिकटिया, सारठ, देवघर, झारखंड)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार मोहन लाल सिंह की एक  ग़ज़ल:

बेटियाँ ,बेटियाँ बेटियाँ

हर जगह चिख रही बेटियाँ ।।

कबतलक ददॅ दरिंदगी का शिकार ,

बनेगी बेटियाँ?

कहीं बलात्कार, कहीं लव जेहाद, तो कहीं जलती है बेटियाँ ।।

आज यही बेटियाँ धरा गगन आशमा की शान है ।

यही तो देश के जज्बा और गौरव बन अरमान है ।।

कबतलक दुःख उत्पीड़न सहेंगी बेटियाँ ।

ऐ कलम बन आवाज

यदि काम आए तू "बेटियाँ "