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कविता: जन्म किस जात में लिया है तुमने...? (कंचन ज्वाला “कुंदन”, रायपुर, छत्तीसगढ़)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार कंचन ज्वाला कुंदन की एक कविता  जिसका शीर्षक है “जन्म किस जात में लिया है तुमने...?”:
 
तुम याद रखना 
ये बात कभी भूलना मत 
भूलोगे तो 
बार-बार तुम्हें याद दिलाया जाएगा 
 
औकात में रहना हमेशा तुम 
ये बात भी गांठ बांधकर रखो 
अमीरों की हैसियत अलग है 
और गरीबों की औकात अलग
 
याद रखना 
हम सब अलग-अलग हैं 
अलग-थलग होने के आड़ बहुत हैं
 
जातियों का आड़ 
गोत्र का आड़ 
अर्थतंत्र का आड़ 
सामाजिक ताना-बाना
धार्मिक जंजाल
 
शाश्वत सत्य यही है
हम कभी एक नहीं हो सकते  
 
रोटी का संबंध 
बेटी का संबंध 
जातियों में ही होंगे 
जो अतिरेक हुआ अपवाद है 
 
शादी के लिए जंजीरें निर्धारित है
तुम कभी भूलकर भी 
कोई गलत जंजीर चुन मत लेना 
 
मृत्यु के बाद भी
तुम जंजीर में जकड़े रहोगे
गोत्र परिवार ही शोक मनाएगा 
मृत्युभोज भी स्वजन खाएंगे 
 
याद रखो 
पैर पर बांधने के लिए बेड़ियाँ तय है
बेड़ियाँ बहुत हैं यहाँ बांधने के लिए 
बेड़ियों की छंटाई करके रखो 
 
क्योंकि ये बेड़ियाँ ही तुम्हारे काम के हैं 
तुम बेड़ियों के बाहर गए तो पशु हो
जंजीरें ही तय करतीं हैं कि तुम क्या हो...
 
हमारी जंजीरों की व्यथा 
गर्भ में भ्रूण से ही शुरू होतीं हैं
मैं तुम्हें एक बार फिर पूछता हूँ 
जन्म किस जात में लिया है तुमने...
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