पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद
पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल
फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत
है। आज
आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार राजीव रंजन की एक कविता जिसका शीर्षक है “जमाने को जानें सुनकर मेरे तराने”:
आज जब आई है बात
गाने की,
सुनिये मैं
सुनाता हूँ अपनी नहीं जमाने की,
मैं जब रोता हूँ
गम के मारे,
लोग कहते हैं इसे
आदत है आँसू टपकाने की ।
जब मैं कहता हूँ
इनसे अपनी दास्ता-ए-गम,
तो ये कहते हैं
इसे तो आदत है बस फरमाने की।
मैं हँसकर चाहता
हूँ अपने गमों को भुलाना,
लोग कहते हैं कि
इसे तो आदत है मुस्कुराने की।
मैं मदद मांगता
हूँ इनसे मजबूर होकर,
ये कहते हैं इसे
तो आदत है बस आजमाने की।
मैं चाहता हूँ गम
भूलाना मयखाने में जाकर,
लोग कहते हैं इसे
तो आदत है यहाँ आने की।
तुम्ही बताओ मैं
फिक्र क्यों करूँ जमाने की,
मैं देखता हूँ
रोज तस्सवुर में अपने महबूबा को
मुझे तो आदत है
बस सपने सजाने की।