पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रीति श्रीवास्तव की एक कविता जिसका
शीर्षक है “करवा चौथ की रात”:
जमीं के चाँद को देखकर,
आसमां का चाँद भी शरमा गया
खुशी से रोशन है आज इतना,
कि सारा जहान
जगमगा गया
इंतज़ार होता है
एक- दूजे को
कि हम दीदार करें,
मिलन सदा हो
हमारा
रब से यही दुआ करें,
हमारी खुशी की
खातिर
मुस्कुराहट अपनी लुटा गया,
जमीं के चाँद को देखकर,
आसमां का चाँद भी शरमा गया
मुझसे ही
खूबसूरती की,
दाद दी जाती है,
पर झूठी हैं ये
सब बातें,
जमीं का चाँद न हो तो,
मेरी अहमियत क्या
रह जाती है
शुक्रगुज़ार हूँ उस खुदा का,
जिसने दिन ये बना
दिया
जमीं के चाँद को देखकर,
आसमां का चाँद भी शरमा गया
सात जन्मों के
साथ की,
मुरादों की, दुआओं की,
आज आमने- सामने
होंगी
दिल से दिल की बात,
और नजरों से बयां
होंगे,
दिलों के जज़्बात
करवा चौथ की रात का,
मंगल समय लो आ
गया
जमीं के चाँद को देखकर
आसमां का चाँद भी शरमा गया |
खुशी से रोशन है आज इतना,
कि हम दीदार करें,
रब से यही दुआ करें,
मुस्कुराहट अपनी लुटा गया,
शुक्रगुज़ार हूँ उस खुदा का,
जमीं के चाँद को देखकर,
दिल से दिल की बात,
करवा चौथ की रात का,
जमीं के चाँद को देखकर
आसमां का चाँद भी शरमा गया |