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कविता: अन्नदाता का धरा में मान होना चाहिए (प्रहलाद मंडल, गोड्डा, झारखंड)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रहलाद मंडल की एक कविता  जिसका शीर्षक है “अन्नदाता का धरा में मान होना चाहिए”:
 
तपते धूप में तड़पते हुए प्यासे,
खेतो में काम किया करते हैं।
खुद उपजाते है अनाज और
वो कभी-कभी भूखे रह जाते हैं।
 
ये किसान है ,
इनका भी तो एक सम्मान होना चाहिए।
अन्नदाताओं का धरा में मान होना चाहिए।
 
जितना बताते ये कम दाम अनाजो के,
उतना ही ओर मोल भाव किया करते हैं।
जब देते हैं ये व्यापारी को अपने अनाज,
सब उसके छपी हुई दामों में खरीदा करते हैं।
 
ये किसान है ,
इनका भी तो एक सम्मान होना चाहिए।
अन्नदाताओं का धरा में मान होना चाहिए।
 
हर साल कर लेते हैं वो कई आत्महत्याए,
दूसरे का पेट भर खुद भूखा मर जाते हैं।
जब आती है बारी सत्ता में आने की,
सिर्फ तभी ही किसानों को देखा करते हैं।
आते ही सत्ता पर सबकुछ भूल जाते हैं।
 
ये किसान है,
इनका भी तो एक सम्मान होना चाहिए।
अन्नदाताओं का धरा में मान होना चाहिए।
 
जय जवान जय किसान