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कविता: हाँ , बस इसी का नाम हैं, जिदंगी (पार्वती कानू, हेमिल्टनगंज, अलिपुरद्वार, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार पार्वती कानू की एक कविता  जिसका शीर्षक है “हाँ , बस इसी का नाम हैं, जिदंगी
”:
 
बनती और बिगड़ती ख्वाब हैं जिदंगी ,
हर रोज नई उम्मीदे जुड़ने की किताब हैं, जिदंगी।
कहीं दर्द कहीं खुशियाँ,
कहीं आश कहीं विश्वास।
हाँ बस इसी का नाम हैं, जिदंगी,,
कभी यह दो पल की  खुशियाँ देकर हँसना सिखाती हैं,
तो कभी गम देकर रोना भी सिखाती हैं।
हाँ बस इसी का नाम हैं, जिदंगी,,
कभी बन जाती हैं किसी के सर का ताज,
तो कहीं कोई दाने - दाने को हैं मोहताज।
हाँ बस इसी का नाम हैं, जिदंगी,,
कभी किसी के सपने बनते देखा,
तो कभी किसी के सपने बिखरते देखा।
हाँ बस इसी का नाम हैं, जिदंगी,,
कहीं नफरत देखी कहीं प्यार देखा।
कहीं मतलब से भरा संसार देखा,
कही पल भर में जीवन सँवरते देखा।
तो कहीं पल भर में बिखरता हुआ संसार देखा,
हाँ बस इसी का नाम हैं, जिदंगी,,
कहीं अपनो को बेगाने हो जाते देखा,
तो कहीं बेगानों को अपने हो जाते देखा।
हाँ बस इसी का नाम हैं, जिदंगी,,
सकारात्मक और नकारात्मक
इन दो शब्दो की पहेली का नाम हैं, जिदंगी।
हाँ, बस इसी का नाम है जिदंगी