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कविता :: लौ का रंग || डॉ● कवीन्द्र नारायण श्रीवास्तव, वाराणसी, उत्तर प्रदेश ||

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
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दीये ने चिराग़ के लौ का रंग बदलते देखा।
सागर ने लहरों को,  हर बार पलटते देखा।
खुद को उपवास रख, साँपों को दूध लावा,
डसे हुए आदमी को कोयल ने कुहुकते देखा।
            दीये ने चिराग़ के लौ का रंग बदलते देखा ,,,
शाख़ों ने बेसहारा बूढ़ी पत्तियों को गिरते देखा।
आँखों ने हर बार आँखों का पानी उतरते देखा।
जहर पिलाने आदमी को, आदमी द्वारा गिलासों में,
साँपों ने दूध को,  पतीले    में   उबलते देखा।
            दीये ने चिराग़ के लौ का रंग बदलते देखा
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