पश्चिम बंगाल
के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार सुनीता द्विवेदी की एक कविता जिसका
शीर्षक है “तप”:
घरों में उग गए जंगल
क्यों न यहीं तपा जाए
क्यों सतयुग की पार्वती
क्यों शिव को पाने इस युग में
वन चला जाए
रोज़ दहकता अग्नि कुंड क्यों न
सहा जाए
विवाह कुंड क्यों त्रेता की शबरी बन
नित नए मन भर अश्रू की बौछार यहां
क्यों द्वापर की गोपी बन जमुना जल
भरा जाए
शिव, राम, कृष्ण को पाने का ढब अब
बदला जाए
पार्वती, शबरी, गोपी क्यों कलयुग में
बना जाए
कहां आसान है इस युग में छोड़ घर
चला जाए
हर घर जंगल, हर मन अग्नि कुंड,
लिया जाए
सब तप रहे राम, सबका सम्मान तो
किया जाए।
नहीं दे सकते कुछ, तो फिर किसी से भी कुछ
क्यों छीना जाए।