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कविता: इन्सानियत बनाऐ रखना (मोहनलाल सिंह, देवघर, झारखंड)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार मोहन लाल सिंह की एक कविता  जिसका शीर्षक है “इन्सानियत बनाऐ रखना”:
 
दुनिया जल रही है,
जाति उन्माद में ।
जहर फैला दिया,
साम्राज्यवाद ने ।।
       धू धू कर जल रहा,
       सारे संसार में ।
        कोई तो आगे बढ ,
          मानवता संसार में ।।
फैला रही है आग,
राजनीति ठेकेदार बन ।
नादानों की झूंड में,
पकती है रोटियाँ ।।
          यूं ही तो रोज सजती है,
          राजनीति की गोटियाँ ।
कभी मुम्बई कभी यूपी
कभी जलती माँ की बेटी ।
मानव के अश्क में दानव बन गया ।
देखो इन्सानियत कहाँ चला गया ।।
सरे आम मरते हैं आदमी,
रोज मरते हैं आदमी ।
सत्तर साल से बाँट रहे जो,
जाति पंथ के नारे से ।।
खुद सिंहासन पर बैठे थे
जाति पंथ के नारों से ।
जन जन के ददॅ से पशुतर से आदमी ।।
आजकल की रिवाज की है कैसी चलन ।
जन ददॅ, कसक ,टीस से, वाकिफ नहीं,
राजनीति का ठेकेदार बने बैठा है ।।
ताज के नुमाइंदे बेखबर सोते हैं,
जनता रोती है ।
हुकूमत वोट बैंक के लिए बैठे हैं ।।
ऐसा चलन ज्यादा दिन नहीं चलता ।
जनता जग जाऐगा तो वो वक्त नहीं रहता ।।
इन्सान बनो इन्सानियत को जगाकर चलो,
गरीबी अमीरी के फकॅ को मिटाते चलो ।।