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ग़ज़ल (सत्येन्द्र मण्डेला, शाहपुरा, भीलवाड़ा, राजस्थान)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सत्येन्द्र मण्डेला की एक ग़ज़ल:

देख ली हमने तो दुनिया, तुम बताओ अपना हाल।

क्यों हैं ज़िन्दा इस जगत में ? जिन्दगी पूंछे सवाल।।

 

किसको बिन सोचे ही कह दें, हाले - उलफत राज़ भी।

रखना पड़ता है यहाँ पर, आबो - इज़्ज़त का ख़याल।।

 

क्या हमें हक़ है नहीं कि, कर सकें ख़ुद पर ग़ुरूर।

ग़र हिमाकत है तो फिर क्यों, देता है हुश्ने जमाल।।

 

जब भी मिलता हूँ किसीसे, लगता क्यूँ बेज़ान सा।

ग़र घराना एक है तो अपनों का फिर क्यों अकाल।।

 

आत्मसंयम, तप - तपस्या, जप - हवन सब धार लें।

ग़र यही है जिन्दगी तो, क्यों रखी रसना रसाल।।

 

ज्ञानी जग के ज्ञान देते, धर्म कर्म की दे दुहाई।

पर रिहाई है नहीं बस, जिन्दगी उलझा सवाल।।