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कविता: जिन्दगी (आकृति, सिरसा, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार आकृति की एक कविता  जिसका शीर्षक है “जिन्दगी”: 

जिन्दगी हर मोड़ पर एक नया रूप दिखायेगी,
कभी ख़ुशी कभी ग़म के सुरीली राग सुनाएगी।
अतीत में जिये या आज में
हर वक़्त तड़पाएगी,
हम सिर्फ मुसाफ़िर है
यह बार बार बतलाएगी,
कभी बहारों कभी पतझड़ में अकेला छोड़ जाएगी।
फिर बहारे आयेंगी और नज़ारे मुस्कुराएंगी,
वह एक मुस्कुराहट हर दर्द भूलाएगी,
भोर की उजली किरण जैसे,
धरती को चमकाएगी,
चंद लम्हों में रैन होते ही अंधेरा कर जाएगी।
बेशक सहना पड़ता है धूप धरती को,
दूसरे ही छड़ वर्षा भी आयेगी,
हर मुस्किलों का हल बताएगी,
जख्म जख्म पर मरहम सी बन जाएगी।
क्या खोया क्या पाया, कुछ समझ न आया,
कुछ तुम संवार लेना, कुछ संवर सी जाएगी,
फूलों से हसना सीख लो
वो काटों में भी मुस्कुराएगी,
मुरझाएगी जरूर, मगर खुसबू दे जाएगी,
इसका क्या पता क्या ठिकाना
वहीं कब्र तक ले जाएगी।
ये ही जिन्दगी है हर वक़्त सिखाएगी।