पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद
पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल
फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत
है। आज
आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार पृथ्वी राज कुम्हार की एक कविता जिसका
शीर्षक है “हिन्दी की दशा/
दिशा/ दुर्दशा”:
हिन्दी मैया का जिसने भी, अच्छे से गुणगान किया।
अज्ञानी से पकड़ा उसको, ज्ञानी का सम्मान दिया ।।
उर्दू-फारसी गले मिली पर, ना इसने अहंकार किया
देवनागरी लिपि इसकी, अंग्रेजी भी इसमें छुप गई
इसको सबने कष्ट दिया, पर इसने सबको प्यार दिया
अज्ञानी से पकड़ा उसको, ज्ञानी का सम्मान दिया
दर - दर इसने खाई चोटे, डगमग यह ना हो पाई
इसके पथ पर जो भी आए, नहीं वो पीछे हटते
क, ख, ग का सहारा लेकर, कर सकते भरपाई
अज्ञानी से पकड़ा उसको, ज्ञानी का सम्मान दिया
अर्थों के अर्थों में बसती, यह ना ढोंग करती है
टूटे - फूटे शब्दों को जोड़ा, सबको ही सम्मान दिया
प्रेम - भाव की भाषा है, और प्रेमी सा बर्ताव किया
अज्ञानी से पकड़ा उसको, ज्ञानी का सम्मान दिया