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कविता: भिगाती बारिश (सुनीता कुमारी, पूर्णियाँ, बिहार)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “सुनीता कुमारी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “भिगाती बारिश
”:

 
कई दिनों से लगातार ,
बारिश हो रही है।
चारो तरफ पानी पानी,
धरती गीली हो,
ऊब उठी है।
 
बाग बगीचे ,
खेत खलिहान ,
गली चौराहा ,
घर ,मकान
भीग भीग परेशान हो गए,
रूक जाए यह बारिश ,
अब,
सब यही दुआ कर रहे।
 
सब भीग चुका,
सब धुल चुका।
बारिश अब तुम,
बस भी करो ,
सबके सब बेहाल हो गए।
तुम थोड़ा आराम करो।
 
सारे छोटे बड़े पेड़ पौधे,
जंगल झार ,बेहाल हो रहे
पानी में भीग भीग कर,
सबके सब हकलान हो रहे हैं।
घर की छतो पर ,
छोटे छोटे गमलो के पौधे
धीरे धीरे दम तोड़ रहे।
रूक जाये यह बारिश
अब ,
सबके सब अब,
यही सोच रहे ।
 
सूर्य किरणों का रास्ता,
मेघों ने रोक रखा है ।
धरती पर  आने से ,
किरणों को टोक रखा है ।
कभी कभार ,
मेघो के घने जंगल से,
किरणें झाकती  ताकती है ।
बारिश का मौसम है अभी ,
यही सोच छिप जाती है।
जिसका समय है ,
उसी का सब है ,
बारिश यही दर्शाती है।