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कविता: उगने लगे हैं पंख ! (डॉ• राजेश सिंह राठौर, कल्याणपुर, कानपुर, उत्तर प्रदेश)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “डॉराजेश सिंह राठौर की एक कविता  जिसका शीर्षक है “उगने लगे हैं पंख !”:

 
फिर उगने लगे हैं पंख
उन परिन्दों के शायद ,
जिन्हे कभी नही देखा
मैने पंख फड़फड़ाते
फड़फड़ा कर पंख उड़ जाते !
 
पिंजरे की दीवारों से
टकरा कर झड़ गये
या कि बहेलियों की
साजिशों से कट गये
या लम्बी शिथिलता से
अवशेषी हो रह गये !
 
लेकिन फिर दिखा है
करिश्मा -
परिन्दों के पंख स्पन्दित हैं,
बहेलियों में ब्याप्त
हो गयी है दहशत !
 
वह नही समझ पाये हैं
यकायक हुये
इस परिवर्तन को ,
खोजते फिर रहे हैं कारण !
 
उनका पंख फड़फड़ाना
संकेत है
कि उनके अन्दर
जिजीविषा अभी शेष है !
 
वे फिर उड़ेंगे
कमजोर पंखो से
तीव्र इच्छा शक्ति से,
आसमान की छाती को
फिर रौंदे गे !
 
और रौंदेंगे बहेलियों के
साम्राज्य को
क्योंकि
सैकड़ो वर्ष की कैद से
उनके अन्दर उपजा है आक्रोश,
उसी आक्रोश से मिला है
उन्हे पंख फड़फड़ाने का जोश !
 
वे आन्दोलित हैं कि अब
गुलामी की बेड़ियां हम तोड़ेंगे,
बहेलियों के जाल को काटकर
स्वछन्द गगन पर फिर उड़ेंगे !