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कविता: भारतीय जवान (बिवेक कामी, गंगुटिया चाय बगान, कालचिनी, पश्चिम बंगाल)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार बिवेक कामी की एक कविता  जिसका शीर्षक है “भारतीय जवान”:

में दूसमान से नहीं डरता
भारत का जवान हूं मैं
रेगिस्तान की धूप हूं मैं
सियाचिन का बर्फ हूं मैं
मरूस्थल के गर्मी में
ठंड का अहसास हूं मैं
जनवरी के मौसम में
गर्म का अहसास हूं मैं
में दूसमान से नहीं डरता
भारत का जवान हूं मैं।
 
बांधे सिर पर कफ़न
सिमा में रहता हूं मैं
बर्फ़ में कई दिनों रहकर
ज़िन्दा निकला हूं मैं
सिने में अपने इच्छाओं
दबाकर भारत के लिए
आगे बढ़ता हूं मैं
लिए कांधों पर राइफल
भारत मां की रक्षा करता हूं मैं
और कोई नहीं भारत का जवान हूं मैं।
 
मेरे दिवाली में रिश्तों का
कोई तेल नहीं
भारत मां के सामने
दिया जलाया हूं मैं
मेरे होली में कोई रंग नहीं
भारत की मीट्टी जो रंगता हूं
मेरे हर ईद का चांद
भारत मां के चरणों में जाता है
मेरे लिए हर साल
राखी लिफाफे में जो आता है
हर एक त्योहार हंस
कर मनाता हूं
भारत का जवान जो हूं।
 
जब आये मां की याद
मिट्टी से मैं लिफट लेता हूं
पिता की छाया माथे पर
हवा का झोंका लाया है
बारिश के बूंदें पत्नी
के आसूं बनकर आया है
राइफल से लिपट कर
दोस्तों को याद करता हूं
और कोई नहीं
भारत का जवान हूं मैं।
 

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