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कविता: एक नारी है अद्भुत रचना (कुमारी दीपा, सीतामढ़ी, बिहार)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “कुमारी दीपा की एक कविता  जिसका शीर्षक है “एक नारी है अद्भुत रचना”:

एक नारी है अद्भुत रचना
न जाने क्यूं तीरस्कार हुई ?
ममता की झोली ले के कितने
बच्चों की है भाग्य बनी।
 
भातृ प्रेम को प्रेम को वो सहेजी
कितनो की थी लाज बनी
बांधी राखी उस डोरी की
जो कितने की फौलाद बनी।
फिर भी नहीं गई वह समझी
ना जाने फिर कितने अपमान सही।
 
पुस्वपथ से कितने पुष्प
आज यहां नोचे जाते हैं,
फिर भी सहती है एक सुता
चुपचाप बिना आवाज किए।
 
एक नारी है अद्भुत रचना ना जाने फिर क्यों तिरस्कार हुई।
एक चोला है नारी का
जिनमें ना जाने कितने किरदार छुपे
एक अनुरागी की स्वभाव सिद्धि
मैं स्वामी की प्राण प्रिय।
 
एक नारी है अद्भुत रचना ना जाने फिर क्यों तिरस्कार हुई।
 
जब लिए विपत्ति झूल रहे थे
बन चली वो रणचंडी
काली दुर्गा या हो वो
झांसी की रानी सबने
अपने रूप लिए जब समय
आ गया था भारी।
 
जब लाज बचाना मुश्किल होता है
चित्तौड़गढ़ के जौहर कुंड में कूद जाती है पद्मिनी।
आप समझ आती है कितनी शक्तिशाली होती है यह नारी।
 
एक नारी है अद्भुत रखना
ना जाने फिर कितनी बार तिरस्कार हुई।