पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद
पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल
फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार “ममता कुशवाहा” की
एक कविता जिसका
शीर्षक है “हिंदी है हमारी मातृभाषा”:
हिंदी है हमारी मातृभाषा
करो सम्मान इसका सदैव
ना कतराओइसे बोलने में
ना कतराओ इसे लिखने में,
हिंदी है हमारी
मातृभाषा
जिसने दिया हमें पहचान
हिंदी भाषी कहलाने का
करो गर्व इस बात पर,
हिंदी भाषी है हम
हिंदी हैं हमारी राज्यभाषा
हिंदी हैं हमारी जन भाषा
जो फैली है जो फैली है विश्वभर में,
बढ़ा रही भारत का
मान
बनाए रखो सदा इसका शान
फिर भी ना जाने क्या क्यों?
कुछ लोग कतराते
हैं,
इसे लिखने पढ़ने
में
जो बोली जाती है हरेक जगह
जो सदियों से हमारी पहचान
मिली है विरासत में हिंदी भाषा,
ना करना इसका
अपमान कभी
जो बढ़ाती हमारी शान
करो हमेशा इसका सम्मान
करो हमेशा इसका व्यवहार
लिखने-पढ़ने, बोलने में
बढ़ाते चलो देश की शान
हिंदी है हमारी पहचान
हिंदी है हमारी शान,
ना करो इसकी
चिंदी
ना करो इसका दूर व्यवहार
शान से करो इसका प्रसार
लगाओ इसमें गर्व का बिंदी,
हिंदी है हमारी
मातृभाषा
हिंदी है हमारी राज्यभाषा
करो सदा इसका प्रसार
पहुँचाओ जन-जन तक इसे ।
हिंदी है हमारी मातृभाषा
करो सम्मान इसका सदैव
ना कतराओइसे बोलने में
ना कतराओ इसे लिखने में,
जिसने दिया हमें पहचान
हिंदी भाषी कहलाने का
करो गर्व इस बात पर,
हिंदी हैं हमारी राज्यभाषा
हिंदी हैं हमारी जन भाषा
जो फैली है जो फैली है विश्वभर में,
बनाए रखो सदा इसका शान
फिर भी ना जाने क्या क्यों?
जो बोली जाती है हरेक जगह
जो सदियों से हमारी पहचान
मिली है विरासत में हिंदी भाषा,
जो बढ़ाती हमारी शान
करो हमेशा इसका सम्मान
करो हमेशा इसका व्यवहार
लिखने-पढ़ने, बोलने में
बढ़ाते चलो देश की शान
हिंदी है हमारी पहचान
हिंदी है हमारी शान,
ना करो इसका दूर व्यवहार
शान से करो इसका प्रसार
लगाओ इसमें गर्व का बिंदी,
हिंदी है हमारी राज्यभाषा
करो सदा इसका प्रसार
पहुँचाओ जन-जन तक इसे ।