पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “डॉ• राजेश सिंह राठौर” की एक कविता जिसका शीर्षक है “उगने लगे हैं पंख !”:
फिर उगने लगे हैं पंख
उन परिन्दों के शायद ,
मैने पंख फड़फड़ाते
फड़फड़ा कर पंख उड़ जाते !
टकरा कर झड़ गये
या कि बहेलियों की
साजिशों से कट गये
या लम्बी शिथिलता से
अवशेषी हो रह गये !
करिश्मा -
परिन्दों के पंख स्पन्दित हैं,
हो गयी है दहशत !
यकायक हुये
इस परिवर्तन को ,
संकेत है
कि उनके अन्दर
जिजीविषा अभी शेष है !
कमजोर पंखो से
तीव्र इच्छा शक्ति से,
फिर रौंदे गे !
साम्राज्य को
क्योंकि
सैकड़ो वर्ष की कैद से
उनके अन्दर उपजा है आक्रोश,
उन्हे पंख फड़फड़ाने का जोश !
गुलामी की बेड़ियां हम तोड़ेंगे,
स्वछन्द गगन पर फिर उड़ेंगे !