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कविता: गुरु (शमा जैन सिंघल, जोरहाट, असम)


 पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “शमा जैन सिंघल की एक कविता  जिसका शीर्षक है “गुरु”:

 
अंधेरी रात को रोशन करता जूं चांद
सूने जीवन को ज्ञान से रोशन करता गुरु
कोरा मन मेरा कच्ची मिट्टी समान
ज्ञानी कुम्हार बन सुंदर घड़ा बनाता गुरु
अज्ञानता को दूर कर ज्ञान का दीप जलाता
जीवन-पथ के कांटें दूर कर शिखर पर चढ़ाता गुरु
संचय धन शिक्षा का दें हमें धनवान बनाता
अपने ज्ञान वेग से हमें उडना सीखाता गुरु
भले-बुरे का भेद बता सही राह दिखाता
शिक्षा रूपी फूलों से जीवन को महकाता गुरु
गुरु हैं मेरे ज्ञान समंदर मैं उनकी लहरों सा
गुंज उठी है दशों दिशा वेधी से गुरु की
कृष्ण कला की ज्योति जगा
धर्म की राह दिखाता गुरु
गुरु की वाणी अमृत तुल्य
घुल जीवन सरिता में बना देता पावन गुरु
नए-नए ज्ञान अंकुर रोज बोता गुरु
एक जुट कर ज्ञान कोपलें  विशाल वृक्ष बनाता गुरु
"जीवन तमस दूर हो शिक्षा से, महकता जीवन शिक्षा से
गुरु बिना ज्ञान नहीं, ज्ञान बिना जीवन में अंधकार"
"श्री गुरूवे नम:"