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कहानी: और, रजनीगन्धा मुरझा गये.. (महेश कुमार केशरी, बोकारो, झारखंड)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “महेश कुमार केशरी की एक कहानी  जिसका शीर्षक है “और, रजनीगन्धा मुरझा गये..": 

        "पापा लाईट नहीं है, मेरी ऑनलाइन क्लासेज कैसे   होंगी... ..? .. कुछ... दिनों में मेरी सेकेंड टर्म के एग्जाम शुरू होने वाले हैं .. कुछ दिनों तक तो मैनें अपनी दोस्त नेहा के घर जाकर पावर बैंक चार्ज  करके काम चलाया, लेकिन अब रोज-रोज किसी से पावर बैंक चार्ज करने के लिए कहना अच्छा नहीं लगता, आखिर, कब आयेगी हमारे घर बिजली .? " संध्या... अपने पिता आदित्य से बड़बड़ाते हुए बोली

        "आ जायेगी, बेटा बहुत जल्दी आ जायेगी "आदित्य जैसे अपने आपको आश्वसत करते हुए अपनी बेटी संध्या से बोला, लेकिन, वो जानता है कि वो संध्या को केवल दिलासा भर दे रहा है सच तो ये है कि अब मखदूम पुर में बिजली कभी नहीं आयेगी सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही बिजली विभाग ने यहाँ के घरों की बिजली काट रखी है पानी की पाइपलाइन खोद कर धीरे-धीरे हटा दी जायेगी, और धीरे-धीरे मखदूम पुर से तमामा  मौलक नागरिक सुविधाएँ  स्वत: ही खत्म  हो जायेंगी और, सर से छत छिन जायेगा फिर, वो सुलेखासंध्यासुषमा और परी, को लेकर कहाँ जायेगा? बहुत मुश्किल से वो अपने एल. आई. सी. के फंँड़ और अपने पिता  श्री बद्री प्रसाद जी की रिटायर मेंट से मिले पँद्रह-बीस लाख  रूपये से  एक अपार्टमेंट खरीद पाया था। तिनका-तिनका जोड़कर जैसे गौरैया अपना घर बनाती है सोचा था कि, अपनी बच्चियों की शादी करने के बाद वो आराम से अपनी पत्नी सुलेखा के साथ रहेगा बुढ़ापे के दिन आराम से अपनी छत के  नीचे काटेगा, लेकिन, अब ऐसा नहीं हो सकेगा। उसे ये घर खाली करना होगा, नहीं तो, नगर-निगम वाले आकर, जे. सी बी. से तोड़ देंगे
 
        वो दिल्ली से सटे फरीदाबाद के पास मखदूम पुर गाँव  में रहता है। पिछले बीस-बाईस सालों से मखदूम पुर में तीन कमरों के अपार्टमेंट में वो रह  रहा है। बिल्ड़र संतोष तिवारी  ने घर बेचते वक्त ये बात साफ तौर पर नहीं बताई थी। ये जमीन अधिकृत नहीं है। यानी वो निशावली  के जंँगलों के बीच जंँगलों और पहाड़ों को काटकर बनाया गया एक छोटा सा कस्बा जैसा था। जहाँ आदित्य रहता  आ रहा  था, हालाँकि, वो अपार्टमेंट लेते वक्त उसके पिता श्री बद्री प्रसाद और उसकी पत्नी  सुलेखा ने मना भी किया था - "मुझे तो ड़र लग रहा है। कहीं .. ये जो तुम्हारा फैसला है, वो कहीं हमारे लिए बाद में सिरदर्द ना बन जाये"

        तब उसी क्षेत्र के एक नामी-गिरामी नेता रंकुल नारायण ने सुलेखा, आदित्य और बद्री प्रसाद को आश्वसत भी किया था - "अरे, कुछ नहीं होगा। आप लोग आँख मूँद कर लीजिए यहाँ अपार्टमेंट। मैनें..खुद अपने रिश्तेदारों और दोस्तों को दिलाया है, यहाँ अपार्टमेंट मैं पिछले पँद्रह-बीस सालों से यहाँ विधायक हूँ। चिंता करने की कोई बात नहीं है" रंकुल नारायण का बहनोई था बिल्ड़र संतोष तिवारी

        ये बात अगले आने वाले विधानसभा चुनाव में पता चली थी जब अनाधिकृत काॅलोनी के टूटने की बात आदित्य को पता चली

        रंकुल  नारायण ने उस साल के विधानसभा चुनाव में, सारे लोगों को आश्वासन दिया था कि, आप लोगों को घबराने की कोई जरूरत नहीं है आप लोग मुझे इस विधानसभा चुनाव में जीतवा दीजिये फिर मैं असेंबली में मखदूम पुर की बात उठाता हूँ, कि नहीं। आप खुद ही देखियेगा। कोई नहीं खाली करवा सकता, ये मखदूम पुर का इलाका। हमने आपके राशन कार्ड बनवाये हमने आपके घरों में बिजली के मीटर लगवाये। यहाँ कुछ नहीं था, जंँगल था जंँगल, लेकिन, हमने जंँगलों को कटवाकर पाईपलाइन बिछाया

        आप लोगों के घरों तक पानी पहंँचाया, ये कोई बहुत बड़ी बात नहीं है अनाधिकृत को अधिकृत करवाना असेंबली में चर्चा की जायेगी, और कुछ उपाय कर लिया जायेगा इस मखदूम पुर वाले प्रोजेक्ट में मेरे बहनोई का कई सौ करोड़ रुपया  लगा हुआ है। इसे हम किसी भी कीमत पर  अधिकृत करवा कर ही रहेंगे, और अंततः रंकुल नारायण की बातों पर लोगों ने विश्वास कर उसे  भारी मतों से जीतवा दिया था। और, रंकुल नारायण के  विधानसभा चुनाव जीतने के साल भर बाद ही सुप्रीम कोर्ट का ये आदेश आया था, कि मखदूम पुर कस्बा बसने से निशावली के प्राकृतिक सौंदर्य और पर्यावरण को बहुत ही नुकसान हो रहा है। लिहाजा, जो अनाधिकृत कस्बा  मखदूम पुर बसाया गया है।  उसे अविलंब तोड़ा जाये। और डेढ़-दो महीने का वक्त खुले में रखे कपूर की तरह धीरे-धीरे उड़ रहा था ...

        "पापा .. ना हो .. तो .. आप मुझे मेरी दोस्त सुनैना के घर छोड़ आईये। वहाँ मेरी पावरबैंक भी चार्ज हो जायेगी और, मैं सुनैना से मिल भी लूँगी मुझे कुछ .. नोटस  भी उससे लेने हैं" आदित्य को भी ये बात बहुत अच्छी लगी सुनैना के घर जाने वाली बच्ची का मन लग जायेगा ... कोविड़ में घर-में रहते-रहते बोर हो गई है आदित्य ने स्कूटी निकाली और, गाड़ी स्टार्ट करते हुए बोला - "आओ, बेटी बैठो"

        थोड़ी देर  में स्कुटी सड़क पर दौड़ रही थी। संध्या को सुनैना के घर छोड़कर कुछ जरुरी काम को निपटा कर वो राशन का सामान पहुँचाने घर आ गया था

        "मैं, क्या करूँ, सुलेखा? तीन-तीन जवान बच्चियों को लेकर कहांँ किराये के मकान में  मारा- मारा फिरूँगा। और अब उम्र भी ढलान पर होने को आ रही है आखिर, बुढ़ापे में कहीं तो सिर टिकाने के लिए ठौर  चाहिए ही कुछ मेरे एल. आई. सी. के फँड हैं, कुछ बाबूजी के रिटायरमेन्ट का पैसा पड़ा  हुआ है जोड़-जाड़कर कुछ पँद्रह-बीस  लाख  रुपये तो हो ही जाएँगे कुछ, संतोष तिवारी से नेगोशियेट( मोल-भाव) भी कर लेंगे और तब आदित्य ने बीस लाख में वो तीन कमरों वाला अपार्टमेंट खरीद लिया था। बिल्ड़र संतोष तिवारी से

        लेकिन, तब सुलेखा ने आदित्य को मना करते हुए कहा था - "पता नहीं क्यों ये संतोष तिवारी और रंकुल नारायण मुझे ठीक आदमी नहीं जान पड़ते। इन पर विश्वास करने का दिल नहीं करता है"

        लेकिन, आदित्य बहुत ही सीधा-साधा आदमी था। वो किसी पर भी सहज ही विश्वास कर लेता था

        तभी उसकी नजर अपनी पत्नी सुलेखा पर गई शायद आठवाँ महीना लगने को हो आया है पेट कितना निकल  गया है। उसने देखा सुलेखा नजदीक के चापाकल से मटके में एक मटका पानी सिर पर लिये चली आ रही है। साथ में उसकी दो छोटी बेटियांँ, परी और सुषमा भी थीं। वो अपने से ना उठ पाने वाले वजन से ज्यादा पानी दो- दो बाल्टियों में भरकर नल से लेकर आ रही थीं आदित्य ने देखा तो दौड़ कर बाहर निकल आया, और, सुलेखा के सिर से मटका उतारते हुए बोला - "पानी नहीं .. आ रहा है .. क्या...? "

        तभी उसका ध्यान बिजली पर चला गया। बिजली तो कटी हुई है। आखिर, पानी चढ़ेगा तो कैसे .?, मोटर तो बिजली से चलता है .. ना। 

        "नहीं-पानी कैसे आयेगा ..? बिजली कहाँ है ... एक बात कहूँ, बुरा तो नहीं मानोगे ना। ना हो तो ... मुझे मेरे पापा के घर कुछ दिनों के लिए पहुँचा दो। जब यहाँ कुछ व्यवस्था हो जायेगी तो यहाँ वापस बुला लेना। बच्चा भी ठीक से हो जायेगा, और, मुझे थोड़ा आराम भी मिलेगा यहाँ इस हालत में  मुझे बहुत तकलीफ हो रही है  पानी भी नहीं आ रहा है बिजली भी नहीं आ रही है। सुलेखा चेहरे का पसीना पल्लू से पोंछते हुए बोली

        अभी तक  सुलेखा और बेटियों को घर  टूटने वाला है। ये बात जानबूझकर, आदित्य ने नहीं बताई है। खाँ-मा-खाँ वो, परेशान हो  जायेंगी ...
 
        "हाँ, पापा घर में बहुत गर्मी लगती है
। पता नहीं बिजली कब आयेगी। हमें नानू के घर पहुँचा दो ना पापा .." परी बोली "हाँ, बेटा, कोविड़ कुछ कम हो तो तुम लोगों को नानू के घर पहुँचा दूँगा" आदित्य परी के सिर पर हाथ फेरते हुए बोला

        "तुम हाथ-मुँह धो लो मैं, चाय गर्म करती हूँ" सुलेखा, गैस पर चाय चढ़ाते हुए बोली
चाय पीकर वो टहलते हुए, नीचे बाॅलकाॅनी में आ गया काॅलोनी में, कॉलोनी को खाली करवाने की बात को लेकर ही  चर्चा चल रही थी

        कुलविंदर सिंह बोले - "यहीं, वारे (महाराष्ट्र) के जंगलों को काटकर वहाँ मेट्रो बनाया गया .. वहाँ सरकार कुछ नहीं कह रही है, लेकिन हमारी काॅलोनी इन्हें अनाधिकृत लग रही है
 सब सरकार के चोंचले हैं। मेट्रो से कमाई है, तो, वहाँ वो पर्यावरण संरक्षण की बात नहीं करेगी। लेकिनहमारे यहाँ, निशावली के जँगलों और पर्यावरण को नुकसान पहुँच रहा है  हुँह .. पता नहीं कैसा सौंदर्यीकरण कर रही है, सरकारफिर, ये हमारा राशन कार्ड, वोटर कार्ड, आधार कार्ड किसलिए बनाये गये हैं? केवल, वोट लेने के लिए जब, कोई बस्ती-काॅलोनी बस रही होती है, बिल्ड़र उसे लोगों को बेच रहा होता है तब, सरकारों की नजर इस पर  क्यों नहीं जाती? हम अपनी सालों की  मेहनत से बचाई, पाई-पाई जोड़कर रखते हैं। अपने बाल-बच्चों के लिए और, कोई कारपोरेट या बिल्ड़र हमें ठगकर लेकर चला जाता है तब, सरकार की नींद खुलती है हमें सरकार कोई दूसरा घर कहीं और व्यवस्था करके दे, नहीं तो हम यहाँ से हटने वाले नहीं हैं

        घोष बाबू सिगरेट की राख चुटकी से झाड़ते हुए बोले - ".. अ रे.. छोड़िये कुलविंदर सिंह। ये सारी चीजें सरकार और, इन पूँजीपतियों के साँठगाँठ से ही होती है, अगर अभी जांँच करवा  ली जाये तो आप देखेंगे कि हमारे कई मिनिस्टर, एम. पी. , एम. एल. ए. इनके रिश्तेदार इस फर्जी वाड़े में पकड़े जायेंगे सरकार के नाक  के नीचे इतना बड़ा काँड़ होता है करोड़ों के कमीशन बंट जाते हैं, और आप कहते हैं, कि सरकार को कुछ पता नहीं होता। हैंय .. कोई मानेगा इस बात को सब, सेटिंग से होता है। नहीं तो इस देश में एक आदमी फुटपाथ पर भीख माँगता है, और दूसरा आदमी केवल तिकड़म भिड़ाकर ऐश करता है ... ये आखिर, कैसे होता है ..?.. सब, जगह सेटिंग काम करती है"

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        उसका नीचे बाॉलकाॅनी में मन नहीं  लगा  वो वापस अपने कमरे में आ गया, और बिस्तर पर आकर पीठ सीधा करने लगा

        तुमसे मैं कई बार कह चुकी हूँ, लेकिन तुम मेरी  कोई भी बात मानों तब ना। अगर, होटल लाईन नहीं खुल रहा है, तो कोई और काम-धाम शुरू करो। समय से आदमी को सीख लेनी चाहिए कोरोना का दो महीना-बीतने को हो आया, और, सरकार, होटलों को खोलने के बारे में कोई विचार नहीं कर रही है। आखिर, और लोग भी अपना बिजनेस चेंज कर रहे हैं, लेकिन, पता नहीं, तुम क्यों इस होटल से चिपके हुए हो ..?

        कौन, समझाये, सुलेखा को बिजनेस चेंज करना इतना आसान नहीं होता है एक बिजनेस को सेट करने में कई-कई पीढ़ियांँ निकल जाती हैं। फिर, उसके दादा-परदादा ये काम कई पीढ़ियों से करते आ रहे थें इधर नया बिजनेस शुरू करने के लिए नई पूँजी चाहिए। कहाँ से लेकर आयेगा वो अब नई पूँजी ..? इधर, होटल पर बिजली का बकाया बिल बहुत चढ़ गया है। स्टाफ का दो तीन महीने का पुराना बकाया चढ़ा हुआ था ही। रही-सही कसर इस कोरोना ने निकाल दी कुल चार-पाँच-महीनों का बकाया चढ़ गया होगा अब तक .. दूकान खोलते-खोलते दूकान का मालिक, सिर पर सवार हो जायेगा दूकान के भाड़े के लिए

        दूध वाले, राशन वाले को भी लाॅकड़ाउन खुलते ही पैसे देने होगें पिछले बीस-बाईस सालों का संबंध है उनका। इसलिए, वे कुछ कह नहीं पा रहे हैं आखिर, वो करे तो क्या करे ..?

        पिछले, लाॅकड़ाउन में भी .. जब संध्या और सुषमा के स्कूल वालों ने कैम्पस केयर (एजुकेशन ऐप) को लाॅक कर दिया था। तो, मजबूरन उसे जाकर स्कूल की फीस भरनी पड़ी थी

        आखिर, स्कूल वाले भी करें तो क्या करेंउनके भी अपने-खर्चे हैं ..  बिल्ड़िंग का भाड़ा, स्टाफ का खर्चा और स्कूल के मेंटेनेंस का खर्चा। कोई भी हवा पीकर थोड़ी ही जी सकता है..

        आखिर, कहाँ, गलती हुई उससे वो इस देश का नागरिक है उसे वोट  देने का अधिकार है वो सरकार को टैक्स भी देता है सारी चीजें उसके पास थीं पैन कार्ड, राशन कार्ड, वोटर कार्ड, आधार कार्ड, लेकिन, जिस घर में वो इधर-बीस-बाईस सालों से रहता आ रहा था वो घर ही अब उसका नहीं था घर भी उसने पैसे देकर ही खरीदा था उसे ये उसकी कहानी नहीं लगती, बल्कि, उसके जैसे दस हजार लोगों की कहानी लगती है  मखदूम पुर दस हजार की आबादी वाला कस्बा था। ऐसा, शायद, दुनिया के सभी देशों में होता है नकली पासपोर्ट, नकली वीजा ... वैध-अवैध नागरिकता सभी जगह इस तरह के दस्तावेज, पैसे के बल पर बन जाते हैं सारे देशों में सारे मिडिल क्लास लोगों की एक जैसी परेशानी है ये केवल उसकी समस्या नहीं है, बल्कि उसके जैसे सैंकड़ों-लाखों करोड़ों लोगों की समस्या है बस, मुल्क
और, सियासत दाँ बदल जाते हैं स्थितियाँ कमोबेश-एक जैसी ही होती हैं सबकी एक जैसी लड़ाईयाँ बस लड़ने वाले लोग, अलग-अलग होते हैं जमीन .. जमीन का फर्क है, लेकिन, सारे जगहों पर हालात एक जैसे ही  हैं

        आदित्य का सिर भारी होने लगा और पता नहीं कब वो नींद की आगोश में चला गया

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        इधर, वो, सुलेखा और, अपनी तीनों बेटियों को अपने ससुर के यहाँ  लखनऊ पहुँचा आया था
और, बहुत धीरे से इन हालातों के बारे में उसने सुलेखा को बताया था

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        "अरे, बाबूजी, अब, ये रजनीगन्धा के पौधे को छोड़ भी दीजिये। देखते नहीं पत्तियों कैसी मुरझा कर टेढ़ी हो गईं हैं अब नहीं लगेगा रजनीगन्धा लगता है, इसकी जड़ें सूख गई है। बाजार जाकर नया रजनीगन्धा लेते आइयेगा मैं लगा दूँगा"
 
        माली, ने आकर जब आवाज लगाई तब, जाकर, आदित्य की तंँद्रा टूटी

        "ऊँ .. क्या .. चाचा . आप कुछ कह रहे थें ..?" आदित्य ने रजनीगन्धा के ऊपर से नज़र हटाई

        करीब-करीब बीस-पच्चीस  दिन  हो गया है
 उसे, नये किराये के मकान में  आये अगले-बगल से एक लगाव जैसा भी अब हो गया है शिवचरन, माली चाचा भी कभी-कभी उसके घर आ जाते हैं इधर-उधर की बातें करने लगते हैं, तो समय का जैसे पता ही नहीं चलता

        मखदूम पुर से लौटते हुए, वो अपने अपार्टमेंट में से ये रजनीगन्धा का पौधा कपड़े में लपेट कर अपने साथ लेते आया था आखिर, कोई तो निशानी उस अपार्टमेंट की होनी चाहिए जहाँ इतने साल निकाल दिये

        "मैं, कह रहा था कि बाजार से एक नया रजनीगन्धा का पौधा लेते आना। लगता ... है, इसकी जड़ें सूख गईं हैं नहीं तो, पत्ते में हरियाली जरूर फूटती देखते नहीं कैसे मुरझा गयी हैं पत्तियाँ? कुँभलाकर पीली पड़ गईं हैंl लगता है, इनकी जड़ें सूख गई हैंl बेकार में तुम  इन्हें पानी दे रहे होl"

        "हाँ, चचा, पीला तो मैं भी पड़ गया हूँ  जड़ों से कटने के बाद आदमी भी सूख जाता है  अपनी जड़ों से कट जाने के बाद आदमी का भी कहीं कोई वजूद  बचता है क्या ..?.. बिना मकसद की जिंदगी हो जाती है  पानी इसलिए दे रहा हूँ ... कि कहीं ये फिर, से हरी-भरी हो जाएँ  एक उम्मीद है, अभी भी  जिंदा है .. कहीं भीतर ..!"
 
        और, आदित्य वहीं रजनीगन्धा के पास बैठकर फूट फूट कर रोने लगा
  बहुत दिनों से जब्त की हुई नदी अचानक से भरभराकर टूट गई थी, और शिवचरन चाचा उजबकों की तरह आदित्य को घूरे जा रहे थें  उनको कुछ समझ में नहीं आ रहा था