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कविता: बीज की जीवनीशक्ति (रविकान्त सनाढ्य, भीलवाड़ा, राजस्थान)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “रविकान्त सनाढ्य की एक कविता  जिसका शीर्षक है “बीज की जीवनीशक्ति”:
 
बीज की जीवनी शक्ति देखिए,
पत्थर को भेदकर भी  आकाश  को  देख लेता  है।
एक हम  हैं जो ज़रा सी कठिनाई आते ही
निराश और  हताश
हो जाते हैं ।
यह भौतिक सुख-सुविधाओं में पलने का
'प्रसाद' है ।
इसीलिए मानव-मन में पलता अवसाद है ।
संघर्षशील का पर्याय है बीज !
नहीं है उसमें अनुत्साह या खीज !
ऊर्ध्वगामिता बीज के व्यक्तित्व की विशेषता है ।
विवशता को ओढ़ मानव ही उसे सहेजता है !
अपनी असफलताओं के गीत मानव ही उगेरता है !
संघर्षशीलता और जिजीविषा बीज की आत्मा में बसती है ।
इसीलिए विशाल वृक्ष
के रूप में उसकी हस्ती है ।
प्रकृति के इन उपादानों से
कुछ प्रेरणा लो  मानव !
अपने सोच को दिशा दो
अभिनव !
फिर विजय-श्री तुम्हारी होगी !
असफलता, निराशा और मायूसी तुम्हारे
शब्दकोश में नहीं होगी !