पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रीतिका छेत्री की एक कविता जिसका शीर्षक है “धर्म":
क्या हैं यह धर्म ?
वह कहते हैं की हम धार्मिक हैं ,
धर्म ही हमारी पहचान हैं,
मंदिर हमारी शान हैं अरे नहीं नहीं मस्जिद
तो सर्व शक्तिमान हैं।
वह कहते हैं हमारे धर्म में ऐसा नहीं
होता..
इसीलिए तो हमारा धर्म हमारा अभिमान हैं।
फिर कोई और कहता हैं, हमारे धर्म में ऐसा ही होता हैं तभी तो
हमारा सम्मान हैं।
पर जब कोई महामारी के समय भूखा था किसिने
ना पुछा उसका धर्म,
जब उस ग़रीब के रहने को घर ना था भीख
माँगता था रास्तों पर ...
किसी ने ना कहा आओ मेरे घर में बहोत जगह
हैं..
तुम रह सकते हो यहीं पर।
फिर मुझे अहसास हुआ , अरे अब कोई मंदिर या मस्जिद आते क्यों
नहीं सामने ..
निकल पड़े हैं मज़दूर मिलो दूर से लेकर
सामान अपने अपने..
मृत्यु हो चुकी हैं सपनो के जिन्हें ले
चली थी माँ अपनी कोख पर..
तो क्या धर्म सिर्फ़ एक शब्द मात्र हैं?
भगवान या ख़ुदा किसिने उनकी तकलीफ़ सुनी
नहीं या उनको भी भेद भाव करने की आदत हैं..
जैसे जब कोइ तिनका तिनका जोड़कर बनाया हुआ
घर आँधी के झोंके से तोड़ने में क्या उन्हें भी मज़ा आता हैं?
क्योंकि बड़े लोग तो बैठे हैं ऊँचे मकानों
में...
तूफ़नो में अक्सर कच्चे घरों को ही उड़ते
देखा हैं..
फिर पता चला धर्म तो सिर्फ़ अमीरों के
होते हैं भई
क्यों की भूख से लड़ने वाले इंसान के
लिए तो जो खाना खिला दे वही धर्मात्मा वही भगवान हैं।