पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार निशा गुप्ता की एक कविता जिसका शीर्षक है “खुद की तकदीर":
आए हो जहाँ मे तो
कुछ कर के जाना
है
दुनिया को क्यों
दोष देना
तुम्हे ही कुछ कर
दिखाना है
खुद की तकदीर
तुम्हे खुद बनाना है !
लोग तो तुम्हे
डराएंगे
लेकिन क्यों डर
जाना है
दुनिया का काम है
हॅसना हसेंगे
तुम्हे तो जीत के
उनको दिखाना है
खुद की तकदीर
तुम्हे खुद बनाना है !
माँ -बाप ने जन्म
दिया
उनका सर गर्व से
उठाना है
दुनिया का काम है
पीछे खींचना
तुम्हे तो फिर भी
आगे बढ़ जाना है
खुद की तकदीर
तुम्हे खुद बनाना है !
लोगो से क्यों
मदद मांगो
अपने दम पे कुछ
कर दिखाना है
दुनिया तो कदम
कदम पे मात देंगे
तुम्हे उन्हें
हरा के दिखाना है
खुद की तकदीर
तुम्हे खुद बनाना है !
रहते हो इस समाज
मे
समाज के लिए कुछ
कर जाना है
दुनिया की भीड़ मे
खोना बिलकुल नहीं
तुम्हे भीड़ मे
अपना पहचान बनाना है
खुद की तकदीर
तुम्हे खुद बनाना है !
रोते हुए आए हो
रुला जाओ ऐसा कुछ
कर जाना है
दुनिया को चाहिए
एक मौका
तुम्हे मौका नहीं
चौका लगा जाना है
खुद की तकदीर
तुम्हे खुद बनाना है !
दिल दुखा के
बद्द्दुवा ना लेना
भूखे को हमेशा
रोटी खिलाना है
दुनिया की बातों
मे कभी ना आना
क्युकी रोते हुए
को भी हँसा जाना है
खुद की तकदीर
तुम्हे खुद बनाना है !
रब को ना भूलना
कभी
सादगी मे ही जीवन
जीना है
दुनिया तो
खींचेगी दलदल मे
तुम्हे उनको ऊपर
उठ के दिखना है
खुद की तकदीर
तुम्हे खुद बनाना है !