पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रविकान्त सनाढ्य की एक कविता जिसका शीर्षक है “मेरी पीड़ा":
मेरी मीठी औ मधुर चहक,
अपनी मस्ती में फुदक-फुदक !
अपने बच्चों को दुलराती !
मैं सबको मंगल-गान सुना
जी सबका ही थी बहलाती !
पर मानव - स्वारथ
-वशीभूत
लालच में इतने भरे हुए ,
पर्यावरणी -सुध
भूल गये ।
बहके धन के लालच
में वे
बनते थे उनके महल नये !
अब पेड़ कटे, जंगल विलुप्त
बंगलों में मेरे नीड़ गये ।
बैठक में सज्जा
कर ज़हीन
मुझको कर बैठे गृहविहीन !
अस्तित्व लुप्तप्रायः मेरा ,
हे मानव, कुछ कर लो विचार,
क्यों करते हो
मेरा शिकार ?
फिर भी ना
मैं हिम्मत हारी
जीवन- संगीत सुनाती हूँ ।
अस्तित्व हुआ है लुप्तप्राय
अब कहीं -कही दिख
जाती हूँ ।
मेरी पीड़ा को समझो तुम,
जीवन-संगीत
सुनाती हूँ ! !
लालच में इतने भरे हुए ,
बनते थे उनके महल नये !
अब पेड़ कटे, जंगल विलुप्त
बंगलों में मेरे नीड़ गये ।
मुझको कर बैठे गृहविहीन !
अस्तित्व लुप्तप्रायः मेरा ,
जीवन- संगीत सुनाती हूँ ।
अस्तित्व हुआ है लुप्तप्राय
मेरी पीड़ा को समझो तुम,