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कविता: बेटी हूं तो क्या हुआ (रिंकी गुप्ता, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रिंकी गुप्ता की एक कविता  जिसका शीर्षक है “बेटी हूं तो क्या हुआ":

बेटी हूँ तो क्या हुआ,
मुझे भी आने दो  ना इस दुनिया में,
मत मिटाओ ना  मेरे अस्तित्व को अपने भीतर,
बोझ समझ मत करो ना मेरी  हत्या,
बेटी हूँ पर में  ही एक दी फूल से
फल देने के लायक बन  जाऊंगी ।।
 
बेटी,  पत्नि, मां,  बहन, हर रिश्ता का वजूद मुझमे ही तो समाया है,
क्या मुझे मार कर अपने वंश की बेल को  आगे बढ़ा पाओगे,
कर मेरा खून  तुम
फिर घर की बहू कहां से पाओगे!!
 
मत समझो ना बेटे  से कमतर मुझे,
मैं भी तो सक्षम बन जाऊंगी,
नारी की मर्यादाओं का पालन कर दोनों घरों की इज्जत बचाऊँगी ।।
 
बेटी होने की इतनी बड़ी सजा मत दो ना,
भूण ह्त्या का पाप कर ,
मेरे अंश को मत कुचलो ना,
बेटी हूं तो क्या हुआ,
संपूर्ण सृष्टि मुझमे  ही तो समाया हैं,
जीवनसंगिनी, मां, बहन, बेटी, हर रूप में मैंने निखार पाया है!!
 
बेटी हूं पर आत्मनिर्भर बन जाऊंगी ,
ऐसा कोई कार्य नहीं जो मैं कर ना पाऊंगी,
बेटी को कमजोर समझ जो मुझे मिटाओगे,
एक दिन तुम खुद ही जीवन में अकेला हो जाओगे!!
 
शक्ति का रूप हूं मैं पुरुष से ना करो मेरी तुलना,
सवय अपने अस्तित्व  को गढ़  कर सकती हूं,
नारी का रूप धर हर क्षमताओं को अपने अंदर भर सकती हूं!!
 
बेटी हूं मैं एक पर रूप मेरे अनेकों है,
डॉक्टर भी में ही हूं, जज  भी मैं ही हूं,
वकील भी मैं ही हूं ,कवित्री भी में हूं,
समाज सेविक , नेता भी मैं ही हूँ,
ऐसा कोई नहीं जहां मेरा अंश ना समाया हो !!
 
इसीलिए कहां-कहां से मुझे मिटाओगे,
मैं तो सर्वस्य सृष्टि में अपना मुकाम बना चुकी हूं,
कितनी भी कर लो कोशिश
बेटी के अस्तित्व को ना, तुम मिटा सकते हो ना मिटा पाओगे!!