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कहानी: 8/8/95 का वह मनहूस दिन (राधा गोयल, दिल्ली)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार राधा गोयल की एक कहानी  जिसका शीर्षक है “8/8/95 का वह मनहूस दिन":

    बैंक से कैश लाते समय झपटमारों ने कैश छीनने की कोशिश में मेरी कनपटी पर मुक्के मारे।कनपटी की तीन हड्डी टूट गईं।गाल की हड्डी का कोना टूटकर दाढ़ के बीच फँस गया।जबाड़ा अपनी जगह से हिल गया जिसकी वजह से मुँह पर आज तक टेढ़ापन है।पहले जी बी पंत हाॅस्पिटल,फिर जयपुर गोल्डन हाॅस्पिटल में इलाज चलता रहा।सन् 2007 में एक बार आँख की रोशनी चली गई।तब मुझे ऑपरेशन के लिये एम्स में रैफर कर दिया। सन् 2007 से मेरा एम्स का इलाज शुरू हुआ। हर साल मेरीएम.आर.आई कराई जाती थी और बीमारी पहले से अधिक  बढ़ी हुई आती थी। वहाँ मेरा इलाज प्रसिद्ध न्यूरो सर्जन प्रोफेसर मंजरी त्रिपाठी द्वारा हो रहा था।उन्होंने मेरी पहले की सभी एम.आर.आई देखीं। एक सहगल नर्सिंग होम में हुई थी। दूसरी भी सहगल नर्सिंग होम में हुई थी। एक हॉस्पिटल में सीटी स्कैन हुआ था। फिर जयपुर गोल्डन में भी MIR V.E.E.G हुई थी। वे सभी एम.आर.आई उन्होंने देखीं व इहबास हाॅस्पिटल में थ्री डी टेस्ला एम.आर.आई करवाने के लिये कहा।उसे देखकर और डॉक्टर से कॉन्फ्रेंस करके उन्होंने भी यह निर्णय लिया कि ऑपरेशन करना पड़ेगा उन्होंने एक बात मुझे जरूर कही कि सभी डॉक्टरों की एक ही राय है कि ऑपरेशन करना पड़ेगा। उसके अलावा कोई चारा नहीं है, किंतु मैं अनऑफिशियली आपको बता रही हूँँ  कि ऑपरेशन से आपको केवल 0.5% फर्क पड़ेगा। 99.5 परसेंट फर्क नहीं पड़ेगा और हो सकता है कि पॉइंट 0.5% भी न पड़े क्योंकि आपका ऑपरेशन बहुत जटिल है। इसमें कुछ भी हो सकता है। यदि आप मेरी बात मानो तो आप रोजाना प्राणायाम किया करो। दवाइयों का साइड इफेक्ट तो होगा,लेकिन सही समय से दवाएँ लोगी तो बिमारी कन्ट्रोल में रहेगी। मैंने कहा कि "डॉक्टर साहब जबसे मुझे अपनी बीमारी के बारे में पता लगा है, तबसे मैं रोजाना प्राणायाम भी करती हूँँ और एक घंटा बिना हिले-डुले ध्यान भी लगाती हूँँ।अभी तक तो मैं केवल सुबह ही करती थी, अब मैं शाम को भी कर लिया करूँगी। रही दवाइयों के साइड इफेक्ट की बात , तो कोई बात नहीं, उसको भी मैनेज कर लूँगी।ऑपरेशन से यदि मैं पैरालाइज्ड हो जाती हूँँ या मेरी विज़न चली जाती है तो ऐसी जिंदगी मुझे नहीं चाहिए।और केवल 0.5% फर्क ही पड़ेगा। दवाईयाँ तो तब भी खानी ही हैं। फिर ऑपरेशन क्यों करवाऊँ?

       डॉक्टर ने मेरी बात मान ली। वह मेरी बात और मेरी इच्छाशक्ति देखते हुए प्रभावित भी बहुत ज्यादा हुईं उसके बाद तो यह हाल था कि एक बार इंडिया हैबिटेट सेंटर में एक सेमिनार होना था जिसमें भारतवर्ष के सभी डॉक्टरों को शामिल होना था। उसमें कुछ मरीज ऐसे बुलाए हुए थे जिनके बच्चों को बीमारी थी और कुछ मरीज ऐसे बुलाए हुए थे, जिनको खुद बीमारी थी और जो बीमारी के एहसास से भी मरे जा रहे थे।तीन माता- पिता ऐसे थे, जो यह सोचकर बच्चों का इलाज करवा रहे थे कि हमें किसी पूर्वजन्म के पापों के कारण यह बीमारी भुगतनी पड़ रही है तो इसे हँसकर क्यों ना झेलें।रोने से क्या बिमारी ठीक हो जायेगी।

   डॉक्टर को मेरी बातचीत से शायद ऐसा लगा कि मुझे लिखने का शौक है। उन्होंने मुझसे पूछा कि..

    "लगता है आपको लिखने का शौक है।"

    "हाँ, हाँ  इन्हें तो बहुत शौक है" मेरे उत्तर देने से पहले ही पति ने कहा।

    "क्या आप स्टेज पर बोल सकती हो"?

    " हाँ हाँ इन्हें तो स्टेज पर बोलने का बहुत शौक है।"

   डॉक्टर ने पूछा- "आप किस विषय पर बोलना चाहोगी?"

    मैंने कहा कि मैं इस विषय पर बोलना चाहूँगी कि कोई भी व्यक्ति बीमारी से नहीं मरता। बीमारी के एहसास से मरता है। डॉक्टर को मेरा यह विषय बहुत पसंद आया और मेरा नाम भी उस लिस्ट में जोड़ लिया गया। जिस दिन इंडिया हैबिटेट सेंटर में प्रोग्राम था, उस दिन मैंने जो बोला उसके लिए मुझे इतनी तारीफ मिली कि वह तारीफ अपने मुँह से करना मुझे अच्छा नहीं लगता।

     संक्षेप में जूनियर डॉक्टर ने पहले मरीज की (मेरी) हिस्ट्री बताई थी उसके बाद मैंने बोलना शुरू किया था क्योंकि उस वक्त तक यह निश्चित हो चुका था कि मुझे ब्रेन ट्यूमर है, किंतु मेरी शक्ल देखकर ऐसा नहीं लगता था कि मुझे ऐसी बिमारी है।

     मेरे बोलने के बाद स्टेज पर जो व्यक्ति बैठा हुआ एंकरिंग कर रहा था, उसने बकायदा मुझसे हाथ मिलाया।मेरी तारीफ की।पूरा हाॅल तालियों से गूँज गया। यह 2008 की बात है। उस समय मुझे एक हजार रूपये,एक बहुत खूबसूरत फोटो फ्रेम व एक सर्टिफिकेट मिला व चार फोटो भी खींची गईं जो बाद में मुझे डाक द्वारा भेजी गईं । कार्यक्रम के बाद लंच था।अलग-अलग शहरों से जो डाॅक्टर्स आए हुए थे,उन्होंने आकर मुझसे हाथ मिलाया और कहा कि "We can't speek Hindi, We can't understand Hindi, but your expressions were so impressive, that we understood everything. In which way u manage your disease?" 

 कई मरीजों के माता-पिता ने भी मुझसे यही सवाल किया कि आपको देखकर तो बिल्कुल नहीं लगता कि आपको इस प्रकार की तकलीफ है।डाक्टर ने जैसा कि बताया कि आपको एम्स के भी सभी डाक्टर्स आपरेशन के लिये कह चुके हैं। डॉक्टर ने हमारे बच्चों को तो यह कहा हुआ है कि गैस पर कोई काम नहीं करना।चाकू का काम नहीं करना। पानी के पास नहीं जाना। वाशिंग मशीन नहीं चलानी। मिक्सी नहीं चलानी। मैंने कहा कि मुझे भी डॉक्टर ने यही सब कुछ बोला हुआ है लेकिन मैं सारे ही काम करती हूँ , क्योंकि नहीं करूँगी तो हर वक्त यही सोचती रहूँगी कि मैं मैं बीमार हूँ। बल्कि मैं तो ज्यादा बीमार होती हूँ तो ज्यादा काम करती हूँ। फिर मैंने उन्हें अपनी कटी हुई उंगली दिखाई जो गलती से ब्लैण्डर धोते हुए आधी कट गई थी।