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कविता: सागर (गोपाल पंचोली 'आशु', भीलवाड़ा, राजस्थान)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार गोपाल पंचोली 'आशु' की एक कविता  जिसका शीर्षक है “सागर":

औदार्य, निष्छल स्वभाव,

निष्कपट, सहनशीलता

तथा

परदुःखकातरता को जीवन में

अपनाकर ।

हम रखें व्यवहार में सागर सी गहराई ।

अल्पकाल है जीना ।

बनें सबके हितैषी ।

 

ना रखें अपना मन मैला ।

सार्थक,

स्पष्ट,

सारगर्भित

तथा बोलें हम सदा शीतल वाणी ।

अपनाएँ जीवन में नैतिक मूल्य ।

बनाएँ उच्चादर्शों की परम्परा ।

लिखें माँ भारती का उज्ज्वल इतिहास ।

अपनी पवित्र लेखनी से ।

 

बनना है सागर तो छोड़ना है

छिछलापन,

ओछापन,

मूढ़ वृत्ति को ।

आओ !

हम सब मिल संस्कृति

का करें पुनर्जागरण ।

'आशु' फिर से बनाएँ,

अपने वतन को विश्वगुरु ।

मिटाएँ आपसी मतभेद ।

बने सुखद राष्ट्र,

मंगलकारी विश्व,

यही हो संकल्प हमारा ।

संकल्प हमारा ।