पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रविकान्त सनाढ्य की एक कविता जिसका शीर्षक है “नारी, अपने को पहचानो !":
नारी, तुम वरेण्य हो,
तुम्हारा दायित्व है भारी !
तुम परिवार को देती हो गति,
न कोई विश्राम न कोई यति !
तुम कमनीय हो कविता- सी,
तुम तेजोमय हो सविता - सी ।
महनीय हैं तुम्हारे सामाजिक सरोकार ,
तुम देती हो समाज को चरित्र और
संस्कार !
तुम प्राची की अनुरागमयी
लाली हो ,
विनम्रता से झुकी डाली हो !
कृतघ्न है वह जो
आँक नहीं पाया तुम्हारे उपकार ,
ज़माने ने किया तुम पर बहुत
अत्याचार !
तुम स्वाति- बूंद की अमूल्य
मोती हो !
अपने मूल्य को आँको ,
अपनी अस्मिता की संचेतना
में झाँको !
नारी कभी भी लाचार नहीं
होती ।
जाग्रत नारी है राष्ट्र की
जीवन- ज्योती ।।