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कविता: घिनौना मुखौटा (नीलू गुप्ता, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार नीलू गुप्ता की एक कविता  जिसका शीर्षक है “घिनौना मुखौटा":

देवियों की पूजा का जहां
एक ओर उत्साह है,
वहीं बेटियां हमारी क्यों
इतनी लाचार है ।
सभ्य बन देवियों को
बसाते हो एक ओर मन में,
तो क्यों कुचलते हो पर उनका
‌उडना चाहे जो उन्मुक्त गगन में ।
बढ़ाए हाथ किस तरफ वो
डर लगता है अपनों से भी अब,
संस्कृति, सभ्यता का जामा पहने
घिनौना सा मुखौटा ओढ़े
चहुं ओर काला प्रेत सा
क्यों साया कोई यूं मंडराता।
मूर्ति में बसी देवियों की
क्यों करते हो आराधना,
जब अपनी ही बहू बेटी का
कर सकते नहीं सम्मान यहां।
दुर्गा,काली,लक्ष्मी के आगे
क्यों हो अपना सिर झुकाते,
और यहां जीवित लड़कियों को
अपने हवस का शिकार बनाते।
मर्दानगी नहीं है यह तुम्हारी
नीच है तुम्हारी मानसिकता,
वहम है यह कि जीत गए तुम
असल में हार की यह शुरुआत है।