पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सीमा गर्ग मंजरी की एक लघुकथा जिसका शीर्षक है “जैसा करनी वैसी भरनी":
अपने जीवन की सारी जमा पूँजी लुटाकर भी विधवा सरिता आज बहुत खुश थी । उसके घर में लक्ष्मी सी बहू रमा का गृह प्रवेश हुआ था । सरिता के इकलौते बेटे नरेन के जीवन में चाँद सी दुल्हिन रमा आ गई थी ।
विवाह पश्चात आठ दस महीनों में ही रमा ने ऐसे तेवर दिखाये कि घर में रोज किच-किच रहने लगी । सुख शांति की तलाश में सरिता खुद को काम में खपाये रखती थी । बहू की अनाप-शनाप बातें सुनकर भी मौन रहती और मुँहफट आरामतलब बहू के कलेजे में सरिता को व्यंग बाणों से बींधकर ही ठण्डक पडती ।
हरदम तनावपूर्ण माहौल में रहने के कारण रमा मानसिक अवसाद ग्रस्त हो गयी । दवा गोली उपचार के अभाव में ऐडियाँ रगड़ती सरिता की तीन साल पश्चात ही जीवन लीला समाप्त हो गयी ।
अब एक साल बाद रमा की गोद में पुत्र खेलने लगा था
समय के साथ रमा का पुत्र जब जवान हुआ तो भयंकर जान लेवा कर्क रोग में जकड़ा गया ।
धीरे धीरे सारा पैसा बेटे का उपचार कराने में खर्च हो गया था । किंतु उसका बेटा फिर भी स्वस्थ नहीं हो सका था ।
ऊपर से आँखों में लाइलाज रतोंधी रोग और हो गया । अब रमा का जवान लाल उसका लाड़ला बेटा रमा की आँखों के सामने तिल तिल कर रोज मर रहा था ।
रमा की आँखों में बेटे की सूरत में जब तब बीमार सास माँ का चेहरा कौंध जाता ।
रमा मन की घुटन और तडप से मौन पश्चाताप के आँसू बहाती रहती ।