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लघुकथा: गरीबी (पंडित नितिन त्रिगुणायत "वरी", शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार पंडित नितिन त्रिगुणायत "वरी"  की एक लघुकथा  जिसका शीर्षक है “गरीबी":

 अब तो सेठ जी ने भी काम पर आने से मना कर दिया है गोपाल ने काम से आने के बाद सुनीता से कहा अब कैसे जीवनयापन होगा क्या होगा कुछ समझ नहीं आ रहा है।

 सुनीता दुखी मन से बोली लल्ला को भी 2 दिन से बुखार आ रहा है, उसे भी दवाई दिलवानी है आज के लिए सेठ जी ने पैसे देने को कहा था पैसे दिए क्या.....?

 गोपाल जेब में हाथ डालते हुए हां ₹300 दिए हैं, उसमें से ₹200  उधारी के  चुका दिए ₹100 बचे हैं उसमें अभी राशन लेना बाकी है घर में भी कुछ खाने को नहीं बचा है  गोपाल ने करुण स्वर में कहा....

 तुम चिंता मत करो ऊपर वाला सब कुछ देख रहा है वह सब कुछ ठीक ही करेगा सुनीता ने गोपाल को समझाते हुए कहा।

 लल्ला को लेकर आओ मैं दवाई दिलवाकर लाता हूं गोपाल ने सुनीता से  कहां सुनीता अंदर लल्ला को लेने चली जाती है।

 सुनीता तेज आवाज में गोपाल को बुलाते हुए अजी सुनते हो लल्ला कुछ बोल ही नहीं रहा है जल्दी आओ गोपाल भागते हुए कमरे में गया गोपाल लल्ला लल्ला उठो बेटा तुम्हें दवाई दिलवा कर लाते हैं.. सुनीता रोते हुए आज इस गरीब ने हमारे लल्ला को हमेशा के लिए सुला दिया है, अगर सही समय पर इलाज मिल जाता तो आज हमारा लल्ला बच जाता।

  इससे अच्छा तो हमें मौत आ जाती है भगवान भले ही मौत देदे पर यह गरीबी किसी को मत देना गोपाल ने बिलखते हुए कहा।