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कविता: वो..... नाचती थी? (प्रीति शर्मा "असीम", नालागढ़, हिमाचल प्रदेश)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रीति शर्मा "असीम" की एक कविता  जिसका शीर्षक है “वो..... नाचती थी?":

 जीवन की,

 हकीकत से ,

 अनजान।

 अपनी लय में,

 अपनी ताल में,

 हर बात से अनजान ।

 

वो...... नाचती थी ?

सोचती.......... थी?

 

नाचना ही..... जिंदगी है ।

गीत- लय- ताल ही बंदगी है।

 

 नाचना........ ही जिंदगी है ।

 नहीं ........ शायद

 नाचना ही.... जिंदगी नहीं है ।

 

इंसान हालात से नाच सकता है।

मजबूरियों की ,

लंबी कतार पे नाच सकता है।

 

लेकिन ...........

अपने लिए ,

अपनी खुशी से नाचना।

जिंदगी में यहीं,

संभव -सा नहीं।

 

हकीकतें दिखी......

पाव थम गए।

 

फिर कभी सबकी आंखों से,

ओझल हो ......

नाचती अपने लिए।

 

लेकिन जिम्मेदारियों से ,

वह भी बंध गए।

 

 फिर गीत -लय -ताल,

 न जाने कहां थम गए ।

 

पांव रुके,

और हाथ चल दिए।

शब्द नाचने लगे।

जीवन की,

हकीक़तों को मापने लगे।

 

उन रुके पांवों को ,

आज भी बुलाते हैं ।

तुम थमें हो ,

नाचना भूले तो नहीं ।

 

 वो.....नाचती थी।

 कभी हकीकतों से परे,

 आज ......भी नाचती है ।

 हकीकतों के तले ।।