मेरे श्रीजी लेखनी भी आज मेरी दंग हुई ,
क्या ही है अमल मनोहर रूप-रंग है ।
नील - परिधान जँच रह्यो सुकुमार तो पै,
छवि पै निसार होवैं करोड़ों अनंग हैं ।
बाजूबंद कंठले तिलक पाग भव्य माल ,
ठुड्डी पर हीरक भी सोहता अभंग है ।
कहै रविकंत तेरो दरस पुलकमय,
बाज रही आज मेरे मनड़ै में चंग है ।।
राधा अरु कृष्ण दोनों एक में समाये हुए,
दीख रहे अलग भी प्रेम की दुहाई है ।
नीलवर्ण -गौरवर्ण सीस लौं फबत चर्ण ,
कृष्णपक्ष निशा रूप, शुक्ल तो जुन्हाई है।
जीवन में सभी पक्ष अतिव महत्त्वपूर्ण,
सधे रहें धारा यही यामैं ही भलाई है ।
विग्रह में चेतना का तत्त्व झलकै परम ,
मन हर लेवै छवि परम सुहाई है।।