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कृष्णभक्ति के छन्द (घनाक्षरी कवित्त) :: रविकान्त सनाढ्य, भीलवाड़ा, राजस्थान



मेरे श्रीजी लेखनी भी आज मेरी दंग हुई , 
क्या ही है अमल मनोहर  रूप-रंग है ।
नील - परिधान जँच रह्यो सुकुमार तो पै, 
छवि पै निसार होवैं करोड़ों अनंग हैं ।
बाजूबंद कंठले तिलक पाग भव्य माल , 
ठुड्डी पर हीरक भी सोहता अभंग है ।
कहै रविकंत तेरो दरस पुलकमय, 
बाज रही आज मेरे  मनड़ै में चंग है ।।


राधा अरु कृष्ण दोनों एक में समाये हुए, 
दीख रहे अलग भी प्रेम की दुहाई है ।
नीलवर्ण -गौरवर्ण सीस लौं फबत चर्ण , 
कृष्णपक्ष निशा रूप, शुक्ल तो  जुन्हाई है।
जीवन में सभी पक्ष अतिव महत्त्वपूर्ण, 
सधे रहें धारा यही यामैं ही भलाई है ।
विग्रह में चेतना का  तत्त्व झलकै परम , 
मन हर लेवै छवि परम सुहाई है।।


आज तो गुलाबी बन्ना हरे ही हरे हैं देखो, 
निसि  अंधियारी निःशेष हुई चाहै है ।
प्रभु को संकेत ऐसो अजब- गजब होवै, 
यदाकदा किसी को ही समझ में आवै है ।
होनेवालोकछूतोहैअच्छो-भलोदेसमाँही, 
चितवन मेरे सरकार की बतावै है ! 
रहो सब निसचिंत, चिंता की है बात नहीं , 
नाहक  ही जियो अरु दिल  घबरावै है !!