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कविता: वर दे वीणा वादिनी (बिंदु अग्रवाल, किशनगंज, बिहार)

 


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार बिंदु अग्रवाल की एक कविता  जिसका शीर्षक है “वर दे वीणा वादिनी":
 
वर दे वीणा वादिनी
जय माँ तू हंसवाहिनी।
हृदय तिमिर को मिटा
तू ज्योति ज्ञान की जला।
 
 
अज्ञानता की कालिमा का
अब ना अट्टहास हो।
दैदीप्तमान हो धरा
प्रकाश ही प्रकाश हो।
 
 
धर्म मार्ग पे चलें
अधर्म का ना वास हो।
हर लोभ पाप को मिटा
हर हृदय निष्पाप हो।
 
 
नींव प्रेम की रखे
जब देह का निर्माण हो।
नव गीत हो,नव ताल हो
हर साँस गुंजायमान हो।
 
 
दिब्य जोत ज्ञान की
जले माँ रात दिन यहाँ।
ज्ञान के प्रकाश से
चमक उठे वसुंधरा।
 
 
भोग विलाश को मिटा
योग का आव्हान हो।
शुशोभित हो वसुंधरा
भारत भूमि महान हो।