पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद
पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रंजना बरियार की एक कहानी जिसका
शीर्षक है “मातृ शक्ति":
आज माँ ने फ़ोन
पर बताया कि “गुड़िया (गुड़ीवा) अब इस दुनिया में नहीं
रही....उसके ससुराल वालों ने दहेज की ख़ातिर उसकी हत्या कर दी”मेरा दिल धक्क से होकर जैसे बैठ गया...थोड़ी देर मैं चुप ही रही, फिर फ़ोन रख दिया!
अतीत के कई पन्ने
कुरेदती हुई चिंता के पास आकर रूक गई।तब, क़रीब बीस वर्ष पूर्व, चिंता मेरे मायके में बर्तन,
झाड़ू पोछा का काम करती
थी। उसकी दो बेटियाँ, बड़ी बेबी और छोटी गुड़िया थी ।बेबी क़रीब आठ
और गुड़िया पाँच वर्ष की होगी! दोनों ही बड़ी प्यारी बिलकुल गुड़िया जैसी ही थीं..
पर भाग्य तो सभी के एक नहीं होते! गुड़िया को उसकी माँ गुड़ीवा कह कर सम्बोधित
करती, सो हमलोग भी वहीं कहते! चिंता एक साथ कई घरों में काम करती
थी।कभी थक जाती तो दोनों में से एक को काम करने भेज देती..छोटी बच्चियों से काम
करवाना तो बहुत बुरा लगता, पर माँ की मजबूरी थी, तब तो बड़ा परिवार हुआ करता था,
सारा काम स्वयं करना माँ
के लिए सम्भव नहीं था,सो उससे
ही किसी तरह काम करवाना पड़ता था!हम बहनें भी कुछ मदद कर दिया करतीं! एक
बार पूरे सप्ताह बच्चियाँ ही काम करती रही.. चिंता नहीं आई! कारण पूछने पर वो कुछ
बता नहीं पाई । चिंता के आने पर माँ ने कारण पूछा तब शर्माती हुई बताई “माँ जी, एकर बप्पा न आयल हलो...तब”माँ ने कहा तो क्या हुआ? उसने कहा “तबियत ठीक नहीं है... एक
माह पहले दो दिन के लिए आया था...फिर मैं पेट से हूँ.. इसलिए” ओह्ह.. माँ ने गहरी साँस ली!
चिंता का पति अपनी शादी के दो
दिन बाद ही उसे छोड़कर कहीं चला गया था.. बहुत खोजने पर भी उसका कोई सुराग नहीं
मिला! तब नौ महीने बाद ही उसने बेबी को जन्म दिया था..फिर दो साल बाद आकर गुड़ीवा
का बीज बो गया! चिन्ता ही चौका बर्तन कर बच्चियों को पालती रही...अब ये तीसरा फिर!
नौ महीने बाद उसने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया! मुझे आज भी याद है वो दिन...
चिंता बहुत खुश थी,क्योंकि ये बेटा था,उसके पति के वंश का संवाहक था!भले ही वंश के संवाहक को उसका पति देखने भी न
आया हो! कुछ दिनों बाद पता चला कि उसका पति मार पीट कर उसके सारे पैसे छीन कर ले
गया.. अपने वंश की तरफ़ उसने देखा तक नहीं!
चिंता ही अकेली
बच्चों को पालती रही.. पति कभी कभी आकर पैसे छीन कर ले जाता.. बस! उसका यही काम
था! कुछ दिनों बाद उसे वो आने नहीं देने लगी थी... कहती “एक तो बच्चा दे जाता है और सब पैसे भी छीन कर ले जाता है!”ऐसे ही उसके दिन बीत रहे थे.. बच्चे भी पल रहे थे! पर थी वो पूरी महारानी
लक्ष्मीबाई! मजाल जो कोई ग़ैर मर्द उसकी ओर नज़र उठाकर देख ले! ईश्वर ने उसे
सुंदरता भी भरपूर दे रखी थी! बेटियों को स्कूल भी पढ़ने भेजती !कुछ दिनों बाद उसने
दोनों बेटियों की शादी भी एक एक कर करवाया.और बेटे को भी मैट्रिक पास करवाया!
बेटियों की शादी तो अच्छे खाते पीते घर में दान दहेज देकर करवायी थी, बेबी का सब ख़ुशहाल ही था, बेचारी गुड़िया का पति और ससुराल वाले दहेज की
ख़ातिर उसे प्रताड़ित करते..जबकि उसका पति सरकारी कार्यालय में प्यून का काम करता
है! ।
चिंता बहुत ही सशक्त महिला है, तभी अकेली ही उसने बेटियों को प्राइमरी शिक्षा दिलवाते हुए सरकारी नौकरी वाले लड़कों
से शादी करवाई..और बेटे को भी पढ़ाया और वो भी सरकारी नौकरी पाने में कामयाब रहा!
उसकी सबसे बड़ी उपलब्धि ये थी कि वो उस ग़ैर ज़िम्मेदार और राक्षस प्रवृत्ति वाले
पति से अपना पिंड छुड़ाने में सफल रही... तभी वो बच्चों को सेटल कराने में भी
कामयाब रही!
आज अचानक गुड़िया की हत्या सुनकर दिल बैठ
गया..अशिक्षित चिंता को अकेले संघर्ष करते हमलोगों ने देखा था, पर समाज की लोलुपता और हैवानियत के सामने एक मातृ शक्ति भी टूट जाती है!
दूसरे दिन घर जाकर
मैंने चिंता की तरफ़ से गुड़िया के पति और उसके ससुराल वालों पर प्राथमिकी दर्ज
करवाया!