पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार बिंदु अग्रवाल की एक कविता जिसका शीर्षक है “गुरु":
बिना गुरु घनघोर तिमिर जग,
राह अंधेरी
डवांडोल पग।
गुरु ही राह दिखाए,
जीवन नाव फंसी
भव-सागर,
गुरु ही पार
लगाए।
गुरु बताए धर्म,अहिंसा,
और जीवन का सार।
गुरु बिना है यह जग सारा,
जैसे नाव बिना
पतवार।
मन मंदिर में
गुरु की मूरत,
सदा बसाये रखिये।
गुरु बताये मूल मंत्र जो,
उसे कभी ना
तजिये।
गुरु की महिमा कैसे बखानू?
कैसे करूँ गुणगान?
ब्रम्हा,विष्णु,महेश खड़े पर,
कोई ना गुरु
समान।
बिना गुरु घनघोर तिमिर जग,
गुरु ही राह दिखाए,
गुरु बिना है यह जग सारा,
गुरु बताये मूल मंत्र जो,
गुरु की महिमा कैसे बखानू?