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कविता: सतगुरु महिमा (कैलाश चन्द महावर‌‌‌, झांपदा कला, जयपुर, राजस्थान)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार कैलाश चन्द महावर‌‌‌ की एक कविता  जिसका शीर्षक है “सतगुरु महिमा":

सतगुरु ही जग का तारणहार
गुरु बिना नहीं होता ध्यान गुरु बिना नहीं होता ज्ञान
गुरु बिना नहीं मिलता मार्ग गुरु बिना नहीं होता मान
गुरु ही सहारा होता है जब दुनिया में होती है हार
सतगुरु ही जग.....
गुरु दिखाएं सत्य का मार्ग भ्रम अंधेरा दूर भगाएं
गुरु दर पर जो कोई आवे सतगुरु उसको मानव बनाएं
काम,क्रोध,मद, लोभ, मोह सबको देता है मार
सतगुरु ही जग.....
सतगुरु शरणां जो कोई आवे सतगुरु आत्म ज्ञान बतावे
जन्म-जन्म के भ्रम मिटाये सत्कर्म की राह दिखावे
आत्म अमर अविनाशी का दर्श करादे लगा देता है नैया पार
सतगुरु ही जग.... .
पारस लोहे को सोना करता सतगुरु करता आप समान
निराकार से नाता जोड़े जग में होता वह महान
दास कैलाश सतगुरु शरणां कर देता है भव से पार
सतगुरु ही जग......