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कविता: कविता ने ले ली अंगड़ाई ! (रविकान्त सनाढ्य, भीलवाड़ा, राजस्थान)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रविकान्त सनाढ्य की एक कविता  जिसका शीर्षक है “कविता ने ले ली अंगड़ाई !":

शब्दों में व्यथा अगर बाँधूँ

तो हृदय किसी का बिखरेगा  !

भावों को मन में क़ैद रखूँ , 

मेरे मानस को अखरेगा ! 


यह कभी नहीं होगा मुझसे 

कागज़ पर पीड़ा उतरेगी ! 

मेरी पीड़ा में गहराई , 

दुनिया की आँखें भीगेंगीं !


जोड़ूँगा टूटे अर्थों को 

खोलूँगा  दिल की परतों को !

 वेदना असीमित गहराई , 

कविता ने ले ली अँगड़ाई ! 


मुझको अब कोई ना रोको , 

अब भाव-घटा है लहराई ! 

कविता  का उमड़ा है सोता , 

अब तनिक लगा लूँ मैं गोता  ! 


 ये नयन-अश्रु अब ढलने दो , 

मोती सम इनको पलने दो ! 

 यह समय-सीप  की सुघराई , 

है रास मुझे इतनी आई ! 


है ज्वार उठा मत थमने दो , 

मेरे अरमान मचलने दो ! 

है विश्व-वेदना पलकों में , 

मुझको कुछ कहना, कहने दो !