पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार कौस्तुभ मिश्रा की एक कविता जिसका शीर्षक है “गुरु":
भेद-भाव,धर्म-जाति से
जों बिल्कुल अनजान है,
सागर सा जिसका ज्ञान है,
देवो जैसा जों महान है,
गुरु ही है जिसके लिए
हर शिष्य एक समान है ||
समाज से जों मिलवाता है,
चरित्र और व्यक्तित्व का जों निर्माता है,
उचित-अनुचित का जों बोध कराता है,
जों अपने शिष्यों को मंज़िल दिखलाता है,
वो गुरु कहलाता है||
गुरु-शिष्य पद्धति का जिसने रखा मान है,
जिसकी वजह से इस देश में हुए
चन्द्रगुप्त, विवेकानंद और अशोक जैसे कई विद्वान है
गुरु महिमा का तो सदा होता ही रहा गुणगान है,
माता पिता और गुरु का एक ही स्थान हैं||
गुरु का जीवन में रहा बड़ा योगदान हैं,
उसकी दी शिक्षा ने दिलाया सम्मान हैं,
वरना तो मनुष्य पशु समान हैं,
प्रत्येक गुरुजनो को साष्टांग प्रणाम हैं ||
भेद-भाव,धर्म-जाति से
जों बिल्कुल अनजान है,
सागर सा जिसका ज्ञान है,
देवो जैसा जों महान है,
गुरु ही है जिसके लिए
हर शिष्य एक समान है ||
समाज से जों मिलवाता है,
चरित्र और व्यक्तित्व का जों निर्माता है,
उचित-अनुचित का जों बोध कराता है,
जों अपने शिष्यों को मंज़िल दिखलाता है,
वो गुरु कहलाता है||
गुरु-शिष्य पद्धति का जिसने रखा मान है,
जिसकी वजह से इस देश में हुए
चन्द्रगुप्त, विवेकानंद और अशोक जैसे कई विद्वान है
गुरु महिमा का तो सदा होता ही रहा गुणगान है,
माता पिता और गुरु का एक ही स्थान हैं||
गुरु का जीवन में रहा बड़ा योगदान हैं,
उसकी दी शिक्षा ने दिलाया सम्मान हैं,
वरना तो मनुष्य पशु समान हैं,
प्रत्येक गुरुजनो को साष्टांग प्रणाम हैं ||