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ग़ज़ल: सीमा गर्ग मंजरी, मेरठ, उत्तर प्रदेश

 


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सीमा गर्ग मंजरी की एक ग़ज़ल:

गुरुदेव ज्ञान ज्योति पुँज जला कीजिए।
चरण कमल में शीश नित धरा कीजिये।।
 
सत्य अहिंसा त्याग पथ चलना सिखाते।
गुरुदेव मानस मन दर्पण देखा कीजिये।।
 
कर्म कसौटी पर कस कर जीवन जीते।
अमूल्य शिक्षा देते गुरुवर गुना कीजिये।।
 
नवनीत समान हृदय में ज्ञान का बोध।
जीवन का मूलमंत्र मान सेवा कीजिये।।
 
"गुरु बिन ज्ञान न होवै"कंचन स्नेह तपाया ।
कर्तव्यनिष्ठ आचरण जीवन तपा कीजिये।।
 
ऋणी रहेंगे हमेशा विद्वतजन गुरुदेव के।
मृगतृष्णा की कीच से दूर बचा कीजिये।।
 
गुरूकुल से आधुनिक युग तक पहचान।
शिक्षा जीवन का आधार पढ़ा कीजिये।।
 
जीवन सफर सरल निष्काम प्रेम भाव।
निर्झर सरिता सा अविरल बहा कीजिये।।
 
करनी कथनी में भेद नहीं सुमार्गगामी।
"सीमा"जीवन सफर यूँ जिया कीजिये।।