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कविता: मन की व्यथा (रंजना मिश्रा, कानपुर, उत्तर प्रदेश)

 


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रंजना मिश्रा की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मन की व्यथा":

मन करता है आज गगन में

चिड़िया बन उड़ जाऊं

दूर-देश का सैर सपाटा

बिन विमान कर आऊं

कोरोना ने आज कैद

घर में हमको कर रखा

मन करता है ठेले पर जा

चाट बताशे खाऊं

लगता है ज्यों बाजारों में

गई नहीं वर्षों से

सुंदर-सुंदर साड़ी-गहने

देख-देख ललचाऊं

आते मुझको याद बहुत हैं

दीदी, भैया-भाभी

तरस-तरस रह जाती हूं मैं

कैसे मिलने जाऊं

देख रही दुनिया में कैसा

हाहाकार मचा है

मन में बड़ी व्यथा है मेरे

चैन न पलभर पाऊं