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बेटी दिवस विशेष कविता: माँ की दुनिया मुन्ना हो या मुनिया (राजीव रंजन, गया, बिहार)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार राजीव रंजन की एक कविता  जिसका शीर्षक है “माँ की दुनिया मुन्ना हो या मुनिया”:


मुन्ना हो या मुनिया हो,
तुम तो मेरी दुनिया हो।
जैसे छत है सबके ऊपर एक नीले आकाश का,
जैसे ताप बराबर देता सूरज अपने प्रकाश का ।
बहता जाये सरिता का जल,
करता जाये सबको शीतल ।
देता तरुवर सबको छाया,
जो भी इसके नीचे आया।
भेद नहीं इनका स्वभाव है क्या मानव क्या प्राणी,
माँ की ममता को जो बांटे सबसे बड़ा अज्ञानी ।
नौ माह तक गर्भ में ढोती,
अपना नींद चैन सब खोती।
दर्द बराबर सहती हूँ मैं,
माँ बनकर खुश रहती हूँ मैं।
राजा हो या रानी तुम,
मेरे जीवन की कहानी तुम।
तू मेरे शरीर का हिस्सा है,
तू मेरी जिंदगी का किस्सा है।
चिड़िया देखो चहक रही है बैठ पेड़ की डाली पर,
माँ का जीवन सदा समर्पित बच्चों के खुशहाली पर।
मेरा है बस इतना कहना,
सदा अच्छे लोगों संग रहना।
देशहित में पड़े जो मरना,
शत्रुओं से कभी न डरना।
पढ़ना-लिखना खुश रहना,घर का मान बढ़ाना,
ऐसा कोई काम न करना,पड़े जो मुंह छुपाना।
छोरा हो या छोरी हो,
मेरे सांसों की डोरी हो।
मुन्ना हो या मुनिया हो,
तुम तो मेरी दुनिया हो।