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दोहे: गुरु और शिक्षा (सोनल ओमर, कानपुर, उत्तर प्रदेश)

 


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सोनल ओमर के दोहे  जिसका शीर्षक है “गुरु और शिक्षा": 

                       (1)

गुरु वंदन कर लगाऊँ, मैं चरणों की धूल।

वह भी पुष्प बन जाता, जो रहा कभी शूल।।

 

                       (2)

पहला जनम तब पाया, जब देखा संसार।

दूजा जनम तब पाया, जब गुरु दे संस्कार।।

 

                       (3)

पहली गुरु होय माता, देवे मौलिक बोध।

इससे ही जाना हमने, संसार कैस होत।।

 

                       (4)

गुरु बिन जीवन न होवे, मिले न कोई ज्ञान।

अंधकारमय जनम का, गुरु ही है वरदान।।

 

                       (5)

ईश्वर से गुरु श्रेष्ठ है, ईश्वर ने दी जान।

जान को कैसे जीना, गुरु देवें संज्ञान।।

 

                       (6)

पुरातन काल में विद्या, संस्कृति व संस्कार।

अब जीविकोपार्जन है, वर्तमान आधार।।

 

                        (7)

गुरु वह श्रेष्ठ जो न करे, शिक्षा का व्यापार।

संग किताबी शिक्षा के, ज्ञान भी दे अपार।।

 

                       (8)

गुरु के लिए सब सम है, कोई ऊंच  न नीच।

बनकर के स्वयं माली, दे हर पौधा सींच।।

 

                       (9)

कुम्हार जैसे भू को, देता है आकार।

गुरु वैसे ही शिष्य का, जीवन देत सुधार।।

 

                       (10)

गुरु की बाते मानिए, कभी न लीजे आह।

गुरु वाणी अनमोल हैं, दिखावे प्रभु राह।।